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| वन्दना । ८३] 'मत्थएण वंदामि' ही रह गया है, और ध्यान रखना होगा, कि धीरे-धीरे कहीं यह भी गायब न हो जाए। प्राचीन परम्पराएँ विलुप्त होती जा रही हैं। ___हाँ, तो आनन्द तो उस प्राचीन युग का भक्त है। उसने अपने युग के अनुसार तीन बार प्रदक्षिणा दी, वन्दना की, नमस्कार किया और फिर उपासना करने लगा।
वन्दना और नमस्कार क्यों किया जाता है ? इसका प्रयोजन क्या है ? महत्त्व क्या है ? जब कोई साधक अपने गुरु के समक्ष पहुँचता है, तो अपनी श्रद्धाञ्जलि अर्पण करता है और उसका अर्थ है, कि अपनी सम्भावनाएँ अर्पण करता है। वन्दनानमस्कार करते समय मरतक झुकाया जाता है, और समग्र शरीर में मस्तक ही सबकुछ है। यदि पाँच-सौ धनुष का शरीर है, और उसमें मस्तक नहीं है, तो वह शरीर लाश ही होगा। इतने बड़े शरीर में भी मस्तक ही महत्त्व की वस्तु है। शरीर में मस्तक को उत्तम अंग कहा गया है।
जब साधक कहता है, कि मैं मस्तक झुका कर वन्दना करता हूँ, तो इसका अर्थ यह होता है, कि मैं सिर की भेंट देता हूँ। जब सिर की भेंट दे दी, तब शेष क्या रह गया ? फिर तो सर्वस्व ही समर्पित कर दिया गया। अपने गहरे मित्र के प्रति कहा जाता है'मैं तुम्हारे लिए अपना सिर देने को तैयार हूँ।' इसका अर्थ यही होता है, कि मैं सर्वस्व निछावर कर देने को तैयार हूँ।
मनुष्य के पास जो प्रतिष्ठा, वैभव और इज्जत है, वह सिर ही है और सिर है, तो सभी कुछ है।
जब साधक कहता है, कि 'मैं मस्तक से वन्दना करता हूँ, तो उसका अर्थ यह होता है, कि मैं सिर अपर्ण करता है। मगर सिर को अर्पण करने का मतलब क्या है? मतलब यह है, कि सोचने-विचारने की क्रिया मस्तक के अन्दर ही होती है, तो मैं अपने विचार आपके अधीन करता हूँ। अर्थात् आपके जो विचार होंगे, वाणी होगी, वही विचार और वही वाणी मेरी भी होगी। जो आपकी भावनाएँ होंगी, वही मेरी भावनाएँ होंगी। आपके और मेरे विचार और वचन में कोई अन्तर नहीं होगा, कोई द्वैत नहीं होगा।
इस प्रकार अपने विचार, वचन, चिन्तन और मनन में अनुरूपता लाना, गुरु के विचार और वचन आदि के साथ उन्हें जोड़ देना ही उन्हें मस्तक झुका कर वन्दननमस्कार करने का अभिप्राय है।
सिर तो हड्डियों का ढेर है। उसमें रहे हुए विचारों का ही महत्त्व है। उनको अर्पित कर देना ही महत्त्वूपर्ण अर्पण है। सिर का आलंकारिक अर्थ विचार और
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