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| वन्दना ।८९ है। अलबत्ता जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ, वंदनीय का चारित्र तो देखना ही चाहिए, और वास्तव में गुणों को ही वन्दना करनी चाहिए।
इस प्रकार सद्भावना से, प्रमोदभावना से, श्रद्धा की भावना से छोटे से छोटे साधु को भी वन्दना करने पर महान् फल मिल सकता है। जो इस पवित्र भाव से चारित्रनिष्ठ सन्तों के चरणों में अपने अहंकार का विसर्जन कर देते हैं, वे कल्याण के भागी होते हैं।
कुन्दन-भवन ब्यावर, अजमेर
२४-८-५०
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