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| आनन्द का प्रस्थान । ५३ अतएव यह जातियाँ कल्पित हैं, वास्तविक नहीं हैं। अगर आप धर्मस्थान में आकर भी यह भावना नहीं जगा सकते, तो कहाँ जगाएँगे? जब आपमें एकत्व की भावना आ जाएगी, तो हम समझेंगे, कि आपमें धर्म का प्रेम जागृत हो गया है। ___ आनन्द सामूहिक रूप में प्रभु के दर्शन करने जा रहा है। सम्भवतः उसके समूह में जात-पाँत का कोई भेद नहीं है, और वह जहाँ जा रहा है, वहाँ तो जात-पात की कल्पना ही नहीं है। तीर्थंकर महावीर ने जातिवाद का प्रबल विरोध किया था। उन्होंने कहा—मनुष्य-मनुष्य सब समान हैं। ऊँच-नीच का भेद, कृत्रिम है, वास्तविक नहीं।
कुन्दन-भवन, ब्यावर, अजमेर
२१-८-५०
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