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५६ । उपासक आनन्द ।
तब किसी ने कहा, यह क्या हुआ ? यह घोड़े पर चढ़ा, हाथी पर चढ़ा और पालकी पर चढ़ा, डग भर भी पैदल नहीं चला, इतने पर भी पैर दबवा रहा है। यह थक कैसे गया?
यह प्रश्न उपस्थित हुआ तो समाधान भी किया गया। कहा गया यह थकावट यहाँ की नहीं है। इन्होंने पूर्व-जन्म में बहुत बड़ा तपश्चरण किया है। ध्यान किया होगा, कायोत्सर्ग किया होगा और कंकर-पत्थरों पर चले होंगे और उग्र विहार किया होगा। यह थकान तब की है। वही अब मिटाई जा रही है। वह थकान इतनी जबर्दस्त थी कि उसे दूर करने के लिए आज तक उपाय किए जा रहे हैं।
जो लोग धन की ऊँचाई पर चढ़ गए हैं, उन्हें स्वयं काम न करने की प्ररेणा इसी दृष्टि से मिलती है। वे इन विचारों को, सुनते हैं, और प्रायः सुना ही करते हैं, तो स्वयं काम करने से विरत हो जाते हैं और दूसरों से काम कराने में ही अपना सौभाग्य समझते हैं। ऐसे ही लोग घोडे, हाथी और पालकी पर चढ़ कर भी पैर दबवाने को तैयार रहते हैं। कोई श्रम नहीं करता है, फिर भी पैर दबवाता है। ऐसा न करेंगे तो लोग कैसे समझ पाएँगे, यह श्रीमान् पूर्वजन्म में बड़ा भारी तप करके आए हैं। ___मैं इस दृष्टिकोण का विरोध करता हूँ । जैन सिद्धान्तों का जिसने अध्ययन किया होगा और मार्मिक मनन किया होगा, वह इस दृष्टिकोण का विरोध ही कर सकता है। जैन-शास्त्र के अनुसार तप, संवर और निर्जरा का हेतु है। अर्थात् तपस्या करने से नवीन कर्मों का आना रुकता है और पहले के कर्मों की निर्जरा होती है। शास्त्र नहीं कहते कि तपस्या करने से ऐसी गहरी थकावट आ जाती है कि जन्म-जन्मान्तर में भी वह दूर नहीं होती। पूर्व-जन्म में की हुई तपस्या की थकान अगले जन्म में पैर दबवाने से मिटती है, यह कल्पना बाल-कल्पना के अतिरिक्त और क्या हो सकती है? इस कल्पना में सच्चाई मान लेने पर तो यह भी मानना पड़ेगा कि जो जितना बड़ा तपस्वी है, उसे उतनी ही अधिक थकावट होगी और उसे दूर करने के लिए उतने ही अधिक जन्म लेकर पैर दबवाने पड़ेंगे और तब कहीं उसकी थकावट मिटेगी। इस प्रकार तपस्या निर्जरा का और मोक्ष का कारण न होकर संसार-परिभ्रमण का, जन्म-मरण की परम्परा को बढ़ाने का कारण बन जाएगी। क्या आप इस सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं ? ___ विचार करने पर मालूम होगा कि इस दृष्टि के पीछे साम्राज्यवाद और पूँजी-वाद की भावनाएँ काम कर रही हैं, जिनमें पूँजी को बड़ा महत्त्व दिया गया है। इस दृष्टि के पीछे दूसरे रूप में एक ललकार है कि अपने आप कोई काम नहीं करना और दूसरे से काम कराना और इसी में पुण्य समझना, भाग्यशाली की निशानी समझना।
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