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[ गुणिषु प्रमोदम् । ३९ जाए तो वही महान् बन सकता है। हमारे यहाँ संस्कृत भाषा में पुराने जमाने से कहावत चली आ रही है--
अश्माऽपि भाति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः। साधारण से पत्थर को जब बहुत लोग प्रतिष्ठा प्रदान करने लगते हैं तो उसमें देवत्व आ जाता है; अर्थात् देव समझा जाने लगता है। देखते-देखते ठुकराया जाने वाला पाषाण भी जब जन-समूह की श्रद्धा-भक्ति पाकर देवत्व की महिमा प्राप्त कर लेता है, तो साधारण साधु भी संघ के द्वारा श्रद्धा समर्पित करने पर महान् क्यों नहीं बन जाएगा ? और इसके विपरीत, बड़े से बड़े ज्ञानी को आप आचार्य बना दें और सामूहिक रूप में उसके प्रति श्रद्धा-भक्ति अर्पित न करें तो कुछ भी न होगा। वह ज्ञानी आचार्य भी निस्तेज और प्रभावहीन ही साबित होगा।
किसी भी एक व्यक्ति में जब संघ का अखण्ड तेज केन्द्रित हो जाता है, तब वह महान् प्रभावशाली बन जाता है और उसका तेज इतना अधिक हो जाता है कि वह अकेले उसी व्यक्ति में नहीं समा पाता; उसकी प्रतिच्छाया सभी पर पड़ती है और उसका तेज संघ के प्रत्येक सदस्य को तेजस्वी बना देता है। संघ का तेज एकत्र पुंजीभूत होकर, सहस्र-गुना बढ़कर अत्यन्त शक्तिशाली बन जाता है और तब समग्र संघ को तेजोमय बना देने में समर्थ हो जाता है। ऐसी स्थिति में इतर लोगों पर भी उसका प्रभाव पड़ता है और वे उसके प्रति अतिशय रूप से आकृष्ट होते हैं।
आचार्य जवाहरलाल जी महाराज की बात सुन कर मैंने सोचा—अगर संघ विचार करले कि हमें अमुक साधु को बड़ा बनाना है, उच्चकोटि का प्रभावशाली बनाना है और उसके पीछे सारी शक्ति लगा दी जाए और धूम मचादी जाए तो, उस साधु का व्यक्तित्व साधारण होने पर भी उसकी महिमा ऐसी बढ़ जाएगी, कि जैन तो क्या जैनतर भी समझने लगेंगे कि कोई बड़े ज्ञानी आए हैं।
और सचमुच कोई बड़े ज्ञानी भी आ गए और हलचल न मची तो क्या होने वाला है ? वह भी औरों की तरह आएँगे और चले जाएंगे। कुछ प्रभाव नहीं पड़ने का, कोई आकर्षण नहीं होने का। __ क्या आपके सिद्धान्त किसी से नीचे हैं ? क्या आपके आदर्श किसी से हीन हैं ? नहीं। आप ऊँचे सिद्धान्तों और आदर्शों का प्रतिनिधित्व करते हुए भी दूसरों के सामने फीके क्यों पड़ जाते हैं ? कारण यही है, कि दूसरों ने अपनी श्रद्धा को केन्द्रित किया है और आपने अपनी श्रद्धा को इधर-उधर बिखेर रखा है। वह श्रद्धा जब तक एक में केन्द्रित न होगी, संघ पनपने नहीं पाएगा।
कल्पना कीजिए, किसी ने एक बाग लगाया और जल की एक बूंद एक वृक्ष में तो दूसरी एक बूंद दूसरे वृक्ष में डाल दी, तो क्या वह बगीचा पनपेगा ? नहीं। हाँ Jain Education International
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