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२८ | उपासक आनन्द उज्जवल ज्योति अपने अन्तर में जगाओ, जिससे अनादि-कालीन अंधकार में विलीन अपने निज के स्वरूप को देख सको। ___भगवान् महावीर की वाणी का प्रकाश आज भी हमारा मार्ग-दर्शन कर रहा हैतो, सन्त-समागम करके अपने श्रेयस का मार्ग क्यों नहीं खोज लेते ? जो ऐसा करेंगे, वे अपने कल्याण का द्वार खोल सकेंगे।
कुन्दन-भवन ब्यावर, अजमेर
१८-८-५०
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