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। प्रभु का पदार्पण | २३] दिक्कालाधनवच्छन्ना -ऽनन्त चिन्मात्र मूर्तये।
स्वानुभूत्येकमानाय नमः शान्ताय तेजसे।। जो परिपूर्ण है, जो देश, काल आदि की सीमाओं से सीमित नहीं है, जो इन तमाम सीमाओं को तोड़कर अनन्त-अनन्त काल तक अमित बना रहेगा, वह चैतन्यदीपक जब जलने लगता है, तब सारे संसार को रहस्य झलकने लगता है। उसी परम तेज को नमस्कार है और यह है परमात्मदशा। तो यह परमात्मदशा महावीर को चैत्र सुदी १३ को नहीं प्राप्त हुई। तीस वर्ष महलों में गुजारे और जगत् की विभूति चरणों की चेरी बनी रही, तब भी वह भागवत दशा नहीं आई। वह उस कठोर साधना के बाद,वैशाख सुदी १०वीं को प्रकट हुई, जब केवल दर्शन और केवल ज्ञान से उनकी आत्मा उद्भासित हुई।
प्रारम्भ से ही तीर्थंकर का जीवन भागवत जीवन नहीं है। जैन-धर्म के अनुसार भगवान् का जन्म नहीं होता। यह अवश्य है, कि जिस जन्म में आत्मा तीर्थंकर बनने वाली होती है, उससे पहले के अनेक जन्मों में वह सत्संस्कारों को ग्रहण करती रहती है, और कई जन्मों के सुसंस्कारों के फलस्वरूप तीर्थंकर के जन्म में, वह मानवीय विकास की चरम सीमा पर पहुँचती है; फिर भी परमात्मा-दशा तो उसे साधना के पश्चात् और विकारों पर विजय प्राप्त करने के पश्चात ही प्राप्त होती है। इस प्रकार पहले से ही कोई आत्मा पवित्र नहीं होती। तीर्थंकर की आत्मा भी पहले तुम्हारी आत्मा के समान ही गलियों में भटकती थी। उन्होंने जीवन का महत्त्व समझा और अप्रमत्त-जीवन में आए। फिर चरित्र की उच्च-उच्चतर भूमिकाओं का स्पर्श करते हुए भागवत अवस्था प्राप्त की। ___ भगवान् ने अपने जीवन का कोई रहस्य हम से नहीं छिपाया। सम्यक्त्व पाने के बाद भी वे कहाँ-कहाँ भटके, किस-किस जीवन में किस-किस योनि में गए, यह बात उन्होंने हरेक को बतलाई। तो, उन्होंने अपने जीवन की कहानी क्या बतलाई, हमें भगवान् बनने की राह बतलाई। उन्हें जो भी मिला उसी को उन्होंने यह राह दिखाई। अतिमुक्त कुमार जैसे बालक को भी बतलाई और अपने जीवन की अंतिम घड़ियों में रोता-हँसता कोई बूढ़ा मिला, तो उसे भी बतलाई। कोई सम्राट मिला तो उसे भी वही राह बतलाई और पथ का भिखारी आया, तो उसे भी उसी राह पर चलने की सलाह दी। बड़े-बड़े पण्डित, गौतम जैसे ज्ञानी मिले, तो उनसे भी इसी राह के सम्बन्ध में कहा, और एक किनारे से दूसरे किनारे तक अनजान किसान मिला, तो उससे भी यही कहा। तो जो भी जिज्ञासु बन कर भगवान् के चरणों में आया, उसको भगवान् ने भगवान् बनने की वही राह बतलाई, जिस पर चल कर वे स्वयं भगवान् बन सके थे। इस दृष्टिकोण से भगवान् तरण-तारण कहलाए। वे स्वयं तिरे
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