Book Title: Tattvarthasutra Hindi
Author(s): Umaswati, Umaswami, Sukhlal Sanghavi
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 12
________________ - बारह - तत्वार्थ विषयक साहित्य प्रकाशित हुआ है। इसमें भी न केवल प्राचीन ग्रन्थों का ही प्रकाशन समाविष्ट है अपितु समालोचनात्मक, अनुवादात्मक, संशोधनात्मक और विवेचनात्मक आदि अनेकविध साहित्य समाविष्ट है। प्राचीन टोका-ग्रन्थों में से सिद्धसेनीय और हारिभद्रीय दोनो भाष्यवृत्तियों को पूर्णतया प्रकाशित करने-कराने का श्रेय वस्तुतः श्रीमान् सागरानन्द सूरीश्वर को है। उनका एक समालोचनात्मक निबन्ध भी हिन्दी में प्रकाशित हुआ है, जिसमे वाचक उमास्वाति के श्वेताम्बर या दिगम्थर होने के विषय में मुख्यरूप से चर्चा है। तत्त्वार्थ के मूल सूत्रों का गुजराती अनुवाद श्री हीरालाल कापड़िया, एम० ए० का तथा तत्त्वार्थभाष्य के प्रथम अध्याय का गजरातो अनुवाद विवेचनसहित प० प्रभुदास बेचरदास परीख का प्रकाशित हआ है। तत्त्वार्थ का हिन्दी अनुबाद जो वस्तुतः मेरे गुजराती विवेचन का अक्षरशः अनुवाद है वह फलोदी ( मारवाड़ ) के श्री मेघराजजी मुणोत के द्वारा तैयार होकर प्रकाशित हुआ है। स्थानव वासी मुनि (बाद मे आचार्य ) आत्मारामजी उपाध्याय के द्वारा 'तत्त्वार्थसूत्र-जैनागम समन्वय' नामक दो पुस्तिकाएं प्रकाशित हुई है । इनमे से एक हिन्दी अर्थ युक्त है और दूसरी हिन्दी अर्थरहित आगमपाठवाली है। श्री रामजीभाई दोशी का गुजराती तत्त्वार्थ-विवेचन सोनगढ़ से प्रकाशित हुआ है। प्रो० जी० आर० जैन का तत्त्वार्थ के पचम अध्याय का विवेचन आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से अग्रेजी में प्रकाशित हुआ है।' प० महेन्द्रकुमारजी न्यायाचार्य द्वारा सम्पादित श्रुतसागराचार्यकृत तत्त्वार्थवृत्ति, पं० लालबहादुर शास्त्रीकृत तत्त्वाथसूत्र का हिन्दी अनुवाद और प० फूलचंद्रजी का हिन्दी विवेचन बनारस से प्रकाशित हुआ है । तत्त्वार्थसूत्र की भास्करनंदिकृत सुखबोधवृत्ति ओरिएण्टल लायब्रेरी पब्लिकेशन की सस्कृत सीरीज में ८४वी पुस्तक रूप से प्रकाशित हुई है जो प० शान्तिराज शास्त्री द्वारा सम्पादित है। यह वृत्ति १४वी शताब्दो की है। तत्त्वात्रिसूत्रीप्रकाशिका नामक व्याख्या जो श्री विजयलावण्यसूरिकृत है और जो श्री विजयनेमिसूरि ग्रन्थमाला के २२ वें रत्न के रूप में प्रकाशित हुई है, वह पंचमाध्याय के १. Cosmology : Old and New. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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