Book Title: Sumanmuni Padmamaharshi Granth
Author(s): Bhadreshkumar Jain
Publisher: Sumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
View full book text
________________
वंदन-अभिनंदन !
संघ के लिए है। मैं पूर्ण रूप से सराहना कर रहा हूँ कि । गुणों के सागर आप श्रमणत्व के प्रतीक हैं। पहचान हैं। गौरव हैं। हम गौरवान्वित हैं आपके दर्शन पाकर ।
मुझमें यह योग्यता नहीं कि किसी महान सन्त जीवन ___ आप दक्षिण के समस्त प्रांतों को घूम-घूम कर घर-घर | का सही-सही विश्लेषण कर सकूँ, और न ही मेरी लेखनी जिनशासन की जाहोजलाली करें और ग्राम नगर पधारकर में इतना बल है कि पूज्य गुरुदेवश्री के दिव्य गुणों का धर्म संदेश को पहुँचावें। साथ ही जैनेत्तर लोगों में भी वर्णन कर सकू। पूज्य गुरुदेव के सम्बन्ध में मुझ जैसे जैनत्व की छाप पड़े इस पर एक विस्तृत कार्यक्रम बनाकर | अल्पज्ञ द्वारा कुछ लिखना, सूर्य की रोशनी का मूल्यांकन श्रावकों की एक समिति बनाकर उन्हें काम सौंपे। आप एक दीपक की रोशनी से करने जैसा होगा। तथापि सक्षम हैं। आप कार्य में विश्वास रखनेवाले व्यक्तित्व है। । श्रद्धेय गुरुदेव के सम्बंध में यथा सामर्थ्य कुछ भावोद्गार आपसे श्रमणसंघ गौरवान्वित है। उसी अनुरूप आप
प्रकट करना मैं अपना परम कर्तव्य समझता हूँ। चतुर्विध संघ का मार्गदर्शन करावें और कार्य की क्रियान्विती श्रमण संघीय सलाहकार मंत्री, उपप्रवर्तक, पंडितरल पर जोर दिरावें। यही मंगलकामना है।
परम श्रद्धेय पूज्य श्री सुमनकुमार जी म.सा. से मेरा पहला वस्तुतः- मैंने आपसे बहुत कुछ पा लिया है। कारण
परिचय २६ जनवरी सन् १६६३ को. माम्बलम् (चेन्नै) के
नवनिर्मित स्थानक भवन के उद्घाटन के शुभ अवसर पर आपने भी मुझे बहुत कुछ दिया है। इसलिये पुनः मांग
माम्बलम श्रीसंघ के पर्व मंत्री श्री मान भीखमचन्दजी गादिया कर रहा हूँ अतः क्षमा करावें। आपकी प्रेरणा से यहाँ स्थानक भवन तथा आप द्वारा उद्घाटित पथ का विश्रामगृह
ने एक सिविल इन्जीनियर के रूप में करवाया। तत्पश्चात् दोनों साधना क्षेत्र में उपयोगी हो रहे हैं।
१६६३ के माम्बलम् चातुर्मास में मुझे आपश्री के दर्शन
एवं जिनवाणी श्रवण करने का सौभाग्य प्राप्त होता रहा। समग्र शुभकामनाओं सहित आप अपने ५० वें दीक्षा |
लेकिन पूज्यश्री का निकट परिचय जून १६६८ में हुआ। के वर्ष में प्रवेश करें। साथ ही पूर्व की भांति आप उसी
जब पूज्यश्री पाँच दिन के लिए शेष काल में माम्बलम उत्साह एवं लगन के साथ जिनशासन की सेवा में अग्रसर
पधारे एवं मुझे माम्बलम् श्री संघ के एक मंत्री के रूप में हों। आप सदा-सदा स्मरणीय रहें। इन्हीं मंगल कामनाओं
पूज्यश्री जी की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। के साथ
तत्पश्चात् १६६८ के साहूकार पेट (चेन्नै) चातुर्मास में “श्रद्धा की दूरबीन में झलकती ज्योति,
अनेक बार गरुदेवश्री के पावन दर्शन व प्रवचन का लाभ इनको अर्पित मेरे ये मोती”।।
प्राप्त होता रहा। जैसा मैंने मुनिश्री को देखा है, समझा है, 9 भंवरलाल साँखला | उसका संक्षिप्त वर्णन प्रस्तुत है - अध्यक्षः एस.एस. जैन संघ, मेटुपालियम्
मैने अनुभव किया कि "पूज्य गुरुदेव गुणों के सागर हैं।" और जिनका वर्णन मेरी यह लेखनी सैंकड़ों वर्षों तक भी नहीं कर सकती। आपश्री एक उच्चकोटि के प्रवचनकार के साथ साथ निर्भीक वक्ता, आगमज्ञ, अनुभवी संत एवं बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। आपकी वाणी में
२७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org