Book Title: Sucharitram
Author(s): Vijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
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सुचरित्रम्
सकती है। सूक्ष्म संसार की भावगहनता में जब कोई उन्नत चरित्र प्रवेश करता है तो वह ज्ञान, विज्ञान, धर्म, दर्शन की ऐसी संजीवनियाँ खोज कर ले आता है जो चिरकाल तक मानवता की चरण बनी रहती है।
रहस्योद्घाटन हेतु प्रयास, दृढ़ता एवं इच्छा-शक्ति का मनोविज्ञान : __संसार के किसी भी कल्पना, अनुमान या धारणागत रहस्य के उद्घाटन हेतु कोई भी चरित्र संपन्न व्यक्ति प्रयास प्रारंभ करता है तो उस समय उसके मनोवैज्ञानिक गतिक्रम के आधार पर कहा जा सकता है कि उसकी सफलता के प्रमुख तत्त्व क्या हो सकते हैं? सामान्य रूप से ये तत्त्व होते हैं1. उद्देश्य की प्रभाविकता, 2. आवश्यक ऊर्जा की पूर्ति, 3. मार्ग में आने वाली बाधाओं का अनुमान एवं 4. लक्ष्य की निकटता के अनुसार सफलता की संभावना। प्रयास के परिणामों के परिप्रेक्ष्य में कमजोरी की शंका होने लगे तब दृढ़ता का भाव उत्पन्न होता है जो आने वाली बाधाओं का मजबूती से मुकाबला करता है। प्रयासरत व्यक्ति का यह स्वाभाविक मनोविज्ञान होता है।
मनोविज्ञानवेत्ताओं द्वारा कई व्यक्तियों पर किए गए प्रयोगों के आधार पर यह सिद्ध हुआ है कि जिस व्यक्ति के कार्य में बाधाएँ अधिक आती है, अधिकांशतः उसका उत्साह दुगुना बढ़ता है तथा वह अवसर को अनुकूल बनाकर सफलता प्राप्त करके ही दम लेता है। इस प्रक्रिया में इच्छा शक्ति (विल पॉवर) का बड़ा सम्बल रहता है। उद्देश्य के निर्धारण, दृढ़ीकरण एवं संघर्ष की मनोदशा में इच्छा शक्ति की प्रबलता किसी भी सीमा तक बढ़ सकती है और सफलता प्राप्त कर सकती है। इच्छा शक्ति की प्रबलता के कारण अपनी कार्य पद्धति पर आत्म-नियंत्रण उत्पन्न हो जाता है, तब वह नियंत्रण इच्छा शक्ति को कार्यक्षम बना देता है। आत्म-नियंत्रण के कारण कई उपयोगी सुझाव स्वतः ही मन की गहराई में जाग जाते हैं।
उद्देश्य प्राप्ति के लिये इच्छा शक्ति के साथ संघर्ष की अवस्था में न्यूनतम प्रयास से अधिकतम संतोष प्राप्त करने का संस्थान (आर्गेनिज्म) प्रत्येक मानव मन में कार्यरत रहता है, यह मनोविज्ञान का सामान्य नियम है। प्रयास के लिये दृढ़ता की पृष्ठभूमि में जो भाव प्रेरक बनते हैं, उनमें प्रशंसा की चाह अथवा दूसरों की आलोचना से बचाव की वृत्ति भी काम करती है, किन्तु सर्वत्र यह वृत्ति जरूरी नहीं। चरित्र की निष्ठा से भरपूर आत्म-नियंत्रण की अवस्था में भीतर से उठने वाली आवाज का अनुसरण करना जैसे उस व्यक्ति के लिए अनिवार्य-सा हो जाता है और वह अपने प्रयास का सुदृढ़ीकरण कर लेता है। (प्रिंसिपल ऑफ मोटीवियेशंस-जनरल साइकोलोजी! द्वारा-प्रो. जे. पी. गुइलफोर्ड)।
इस मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया से यह तथ्य उभर कर सामने आता है कि आत्म-शक्ति एवं आत्मनियंत्रण की अवस्था में आत्मा के भीतर से उठने वाली आवाज किसी भी श्रेष्ठ उद्देश्य की पूर्ति में सारा साहस और सामर्थ्य नियोजित करके व्यक्ति को संघर्षशील बना देती है जो अन्य दशाओं में मुश्किल से ही संभव होता है। यों चरित्रनिष्ठा की शक्ति मनोविज्ञान से भी प्रमाणित होती है।