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श्राद्धविधि / ११
अतिनिद्रा के स्वभाव के कारण यदि बहुत जल्दी उठना शक्य न हो तो भी कम-से-कम चार घड़ी ( 96 मिनट) रात्रि शेष रहने पर - ब्राह्ममुहूर्त्त में तो नवकार के स्मरणपूर्वक अवश्य उठ जाना चाहिए ।
उठने के बाद द्रव्य-क्षेत्र काल और भाव को उपयोग कौन हूँ ?' श्रावक अथवा अन्य ? क्षेत्र से 'मैं कहाँ हूँ ?' उपरि भाग में अथवा नीचे के भाग में काल से क्या है ? क्या स्थिति है ?" लघुनीति आदि से पीड़ित हूँ अथवा नहीं ?
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करना चाहिए। जैसे - द्रव्य से 'मैं स्वगृह में अथवा अन्यत्र ? दिन अथवा रात्रि ?
घर के भाव से 'मेरी
इस प्रकार विचार करने पर भी यदि निद्रा दूर न हो तो नाक को क्षणभर के लिए बन्द कर निद्रारहित बनना चाहिए । इस प्रकार निद्रामुक्त बनने के बाद मकान के दरवाजे को ध्यान से देखकर लघुनीति (पेशाब) व बड़ीनीति ( मलत्याग) आदि से निवृत्त होना चाहिए ।
साधु को लक्ष्य में रखकर 'श्रोघनियुक्ति' में कहा है- “रात्रि में मल-मूत्र आदि की शंका हो तो सर्वप्रथम जागृत होकर द्रव्य-क्षेत्र - काल और भाव से अपनी स्थिति का विचार करें। उसके बाद भी निद्रारहित न बने हों तो नाक बन्द कर श्वास को रोक कर निद्रारहित बनें । उसके बाद ही मल-मूत्र आदि की शंका का निवारण करें ।"
रात्रि में यदि कोई काम आ पड़े और किसी से बातचीत करनी पड़े तो मन्द स्वर से ही करें । रात्रि में खांसी, खखारना, हुंकार श्रादि भी धीमे स्वर से करे, जोर से नहीं । रात्रि में जोर से आवाज अथवा खांसी आदि करने से छिपकली आदि हिंसक जीव मक्खी आदि को मारने का प्रयत्न करेंगे। पड़ौसी यदि जग गये तो वे आरम्भ - समारम्भ का कार्य करेंगे। जैसे—पानी भरने वाली, रसोई बनाने वाली, व्यापार करने वाले, शोक करने वाले, मुसाफिर ( यात्रिक), किसान, माली, रहट चलाने वाले, चक्की आदि यंत्र चलाने वाले, पत्थर तोड़ने वाले, चक्र घुमाने वाले (तेली), धोबी, कुम्हार, लुहार, सुथार, जुझारी, शस्त्र-निर्माता, शराब बनाने वाले, मच्छीमार, कसाई, जाल फेंकने वाले, शिकारी, हिंसा करने वाले, परस्त्रीगमन करने वाले, तस्कर तथा डाकू आदि परम्परा से अपने-अपने कार्य ( हिंसादि) को करेंगे, अतः निरर्थक उन सब दोषों के भागी बनते हैं और इस प्रकार अनर्थदण्ड की प्राप्ति होती है ।
'भगवती सूत्र' में कहा है-वच्छ देश के महाराजा की बहिन जयन्ती श्राविका के पूछने पर भगवान महावीर प्रभु ने कहा- "धर्मी का जगना और पापी का सोना" लाभ के लिए होता है ।
नींद से जगने पर जाँच करनी चाहिए कि निद्रा भंग के समय पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश इन पाँच तत्त्वों में से कौनसा तत्त्व चल रहा था ? कहा भी है
१. जल और पृथ्वीतत्त्व में निद्राविच्छेद लाभदायी है और आकाश, वायु और अग्नितत्त्व में निद्राविच्छेद हानिकारक है ।
२. शुक्लपक्ष में प्रतिपदा से तीन दिन तक प्रातःकाल सूर्योदय के समय चन्द्रनाड़ी लाभकारी है और कृष्णपक्ष में प्रतिपदा से तीन दिन तक सूर्योदय के समय सूर्यनाड़ी लाभकारी है ।