________________
श्राद्धविधि/8
तथा स्वयम्भूरमण समुद्र में उत्पन्न मत्स्यों के मांस-भक्षण आदि का पच्चक्खाण त्रिविध-त्रिविध करने की छूट है।
* प्रागमों में श्रावकों के अन्य भेद * ठाणांग (स्थानांग) सूत्र में चार प्रकार के श्रावक कहे गये हैं१. माता-पिता के समान, २. भाई के समान, ३. मित्र के समान और ४. सौत के समान
.
अथवा १. दर्पण के समान, २. पताका के समान, ३. स्थाणु के समान और ४. खरंटक के समान । प्रश्न-इन भेदों का नाम आदि चार भेदों में से किस भेद में अवतरण कर सकते हैं ?
उत्तर-व्यवहार नय के मत से तो तदरूप व्यवहार होने से वे भावश्रावक कहलाते हैं परन्तु निश्चय नय के मत से वे सौत के समान और खरंटक के समान मिथ्यादृष्टि जैसे होने से द्रव्यश्रावक हैं और शेष भावश्रावक हैं। कहा भी है
. साधु के कार्य आदि करते हों, साधु के प्रमादाचरण को देखकर भी जो साधु पर स्नेहरहित नहीं बनते हों, यतिजन पर सदा वत्सल रहते हों, ऐसे श्रावक 'माता-पिता' के समान कहलाते हैं।
• साधु के विनय-कर्म में मन्द आदर वाला हो परन्तु हृदय में स्नेहभाव रखता हो एवं आपत्ति के समय सहायता करने वाला हो, ऐसा श्रावक 'भाई' के समान कहलाता है।
• बिना पूछे काम करने वाले मुनि पर जो गुस्सा करता है, किन्तु स्वजन से भी साधु की अधिक कीमत करता है, ऐसा श्रावक 'मित्र' के समान कहलाता है।
• स्वयं अभिमानी हो, सदैव साधु के छिद्र ही देखता हो और कुछ भी छिद्र दिखने पर हमेशा जोर से चिल्लाता हो और साधु को तृण समान गिनता हो, ऐसा श्रावक 'सौत' (सपत्नी) के समान श्रावक कहलाता है। द्वितीय चतुष्क के श्रावक
• गुरु के द्वारा कहे गये सूत्र और अर्थ को उसी रूप में हृदय में धारण करता हो, ऐसे श्रावक को शास्त्र में 'दर्पण' के समान सुश्रावक कहा गया है।
• पवन से अस्थिर ध्वजा की तरह जो मूढजनों से भ्रमित हो जाता हो और गुरु के वचन पर जो विश्वास नहीं रखता हो, उसे 'पताका' समान श्रावक कहते हैं ।
• गीतार्थ के समझाने पर भी जो अपने कदाग्रह को नहीं छोड़ता हो परन्तु मुनिजन पर द्वेष नहीं करता हो, उसे 'स्थाणु' समान श्रावक कहते हैं ।
• सच्ची बात कहने पर भी जो अपने गुरु को "तुम उन्मार्गदर्शक हो, निह्नव हो, मूढ़ हो और मन्दधर्मी हो"-इस प्रकार दुर्वचन रूप मल से बिगाड़ता हो, उसे 'खरंटक' समान श्रावक कहते