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श्राद्धविधि/७
मुनि भगवन्त ने उन स्त्रियों को उपदेश देते हुए कहा-"मेरी पाँच प्रतिज्ञाएँ स्वीकार करोगी तो तुम्हारे सब दुःख दूर होंगे।" मुनि की यह बात सुनकर गुप्त रूप से रहे सुरसुन्दर को गुस्सा आ गया और उसने मुनि के पाँच अंगों पर पाँच-पाँच प्रहार करने का निश्चय कर लिया।
इसी बीच उन स्त्रियों ने पूछा-"पाप कौनसी प्रतिज्ञाएँ स्वीकार कराना चाहते हैं ?" मुनि ने कहा-"किसी भी निरपराध त्रस जीव को खत्म करने की बुद्धि से नहीं मारना।"
इस बात को दृष्टान्तपूर्वक समझाने पर सभी स्त्रियों ने प्रथम अणुव्रत (प्रतिज्ञा) स्वीकार किया।
यह बात सुनकर सुरसुन्दर ने सोचा, "अहो! इस महात्मा ने तो मेरी स्त्रियों को सुन्दर शिक्षा दी है-इस प्रतिज्ञा के कारण प्रसंगवश कुपित होने पर भी ये स्त्रियाँ मुझे तर्जना नहीं करेंगी" इस प्रकार विचार कर सुरसुन्दर ने महात्मा को एक प्रहार कम करने का अर्थात् चार ही प्रहार करने का संकल्प किया।
. पुनः महात्मा के मुख से क्रमशः झूठ, चोरी, अब्रह्म एवं परिग्रह के संदर्भ में समुचित प्रतिज्ञाओं की बातें सुनकर पाँचों स्त्रियों ने शेष चारों अणुव्रत भी स्वीकार किये। इन बातों से सुरसुन्दर प्रसन्न होता गया और एक-एक प्रहार कम करता गया।
अन्त में, सुरसुन्दर को लगा कि ये महात्मा तो निष्कामभाव से परोपकार करने वाले हैं, . अतः पूज्य हैं। इस प्रकार विचार करते हुए उसने सोचा-"अहो ! मैं पापी हूँ। मैंने गलत विचार किया है।"
इस प्रकार पश्चाताप कर वह तत्काल मुनि भगवन्त के पास गया और उनसे नमस्कार पूर्वक अपने अपराध की क्षमायाचना कर पाँचों स्त्रियों के साथ संयम धारण कर आयु का अन्त होने पर स्वर्ग गया।
इस प्रकार स्वेच्छा अथवा किसी की प्रेरणा से व्रत लेने वाला व्रतश्रावक कहलाता है।
३. उत्तरगुरण श्रावक-श्रावक के पाँच अणुव्रतों के साथ-साथ तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रतों को धारण करने वाला उत्तरगुण श्रावक कहलाता है। जैसे-सुदर्शन सेठ ने सम्यक्त्व सहित बारह व्रत ग्रहण किये थे।
* अन्य प्रकार से व्रतश्रावक एवं उत्तरगुरण श्रावक * - १. व्रतश्रावक-सम्यक्त्व सहित एक, दो, तीन से लेकर बारह व्रत तक ग्रहण करने वाला व्रतश्रावक कहलाता है।
२. उत्तरगुरणश्रावक-सम्यक्त्व सहित बारह व्रतधारी, सर्वथा सचित्तपरिहारी, एकाहारी (एक बार भोजन करने वाला). तिविहार-चोविहार का पच्चक्खाण करने वाला, ब्रह्मचारी, भूमिशयनकारी, श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं को वहन करने वाला तथा अन्य अनेकविध अभिग्रहों को धारण करने वाला उत्तरगुण श्रावक कहलाता है ; जैसे-आनन्द, कामदेव, कार्तिकसेठ आदि।