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बसी है यह बात प्रसिद्ध है कि निंबुका नाम लेते ही मुह पाणी आ जाता है । वास्ते उक्त कथावों न करे अगर करेंगे तो पूर्वोक्त केवली परूपत धर्मसे भ्रष्ट हो जावेगा ।
(३) तीसरी वाड = जहां पर स्त्रीयों वेठी हो उन्ही स्थान पर कमसे कम दो घड़ी तक ब्रह्मचारीयोंकों नहीं बेठना चाहिये । इसी माफोक ही जहा पुरुष बेठा हो उन्ही स्थान पर ब्रह्मचारजीमोंकों न बेठना चाहिये । कारण कि उन्ही स्थानके परमाणुकें . विषश्मय होजाते है जैसे जिस स्थान पर अग्नि प्रज्वलत हुई है. वह अग्नि उठा लेने के बाद भी ठपा हुवा कठन वृत रखा जावें तो वह घृत अपने कठनता से पीगल जावेगा वास्ते उक्त स्थान पर न बैठे अगर कोई बेठेगा तो पूर्वोक्त धर्मसे भ्रष्ट होगा ।
(४) चोथी वाड - ब्रह्मचारी पुरुषों स्त्रीयोंके मनोहर सुंदर शर रके अवश्य जैसे नेत्र मुख स्तनादि अंगोपागकों राग दृष्टिसे न देखे । कारण उक्त स्त्रीर्थोके अंदर देखने से चित्तवृती मलीन होती है। अनादि कालका परिचत काम विकारोत्पन्न होता है जैसे किसी पुरुषने अपने नेत्रोंकि कारो कराई है वह सूर्यके सन्मुख देखनेसे नेत्रोंको आवश्य नुकशान होगा यावत् धर्मसे भ्रष्ट हो जायगा ।
(५) पांचवी वाड = भीत ताटी कनातके अन्तरे स्त्रीयोंके हास्या शब्द, काम क्रीडाके शब्द, रूइन करते शब्द, विलास शब्द, और भी कीसी प्रकारके शब्द जो कि चित्तवृती मलीन और विषय विकारोपन करता हो एसा शब्द श्रवण नही करना चाहिये अर्थात् प्रथमसे ही जहापर स्त्रीजन परिचय हो वहपर टेरनाही नही चाहिये कारण उक्त शब्द सुनते ही जेसे गान सुनते ही मयूर