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ब्रह्मचार्य व्रतकि मजबुतिके लिये शास्त्रकारोंने नव वाड और दशवा कोट बतलाया है । यथा- .
(१) पहेली वाड-जहापर पशु नपुंसक और स्त्रीयों रेहती हो तथा और भी विषय विकारोत्पन्न करनेवाले चित्र या कोई भी पदार्थ हो एसा मकानमे ब्रह्मचारीयोंकों न ठेरना चाहिये । कारण आत्मा निमित्तवासी है । उक्त पदार्थ देखनेसे चित्त वृती मलीन होती है अनेक संकल्प विकल्पोत्पन्न होते है । इन्होंसे ब्रह्मचार्यपालन करनेमें भी शंका होती है विषय सेवनरूप कांक्षा होती हैं भवान्तरमें फल होगा या न होगा एसी विगिच्छा होती है याघत शरीरमें रोगोत्पन्न हो जाते हैं वेभान हो जाते है और केवली परूपित धर्मसे भ्रष्ट हो जाते है वास्ते उक्त स्थानों में ब्रह्मचारी पुरुषोंकों न ठेरना जेसे द्रष्टान्त किसी मकानमें बीलाडी (मञ्जार) रेहती हो वहा अगर 'भूषा' निवासा करे तो उन्हींके जीवकों आवश्य नुकशान पहुंचती हैं। उक्तं च-जहा विराला व सहस्स मूले।
न मूसगाणं वसही पसत्था ॥ एमेव इत्थी निलयस्स मज्झे ।
न बंभयारिस्स संम्भे निवासो॥१॥ () दुसरी वाड-ब्रह्मचार्य पालन करनेवाले महा पुरुषोंकों स्त्री संबन्धी अंगोपाग हास्य विनोदं श्रृगारादि कथा वार्तावों न करना चाहिये कारण अनादि कालसे जीव विषय विकारसे परिचित है वास्ते हास्य विनोद श्रृंगार के साथ स्त्रीयोंके रूपयोवन लावण्य और अंगोपांगकि कथावों करनेसें चित्तवृती मलीन हो