Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, २, ५, ४.] वेयणमहाहियारे वैयणखेत्तविहाणे पदमीमांसा णाणावरणीयवेयणा खेत्तदो सिया उक्कसा, अद्वैरज्जूण मुक्कमारणंतियमहामच्छम्मि उक्कस्सखेत्तुवलंभादो । सिया अणुक्कस्सा, अण्णत्थ अणुक्कस्सखेत्तदंसणादो । सिया जहण्णा, तिसमयआहारय-तिसमयतब्भवत्थसुहुमाणिगोदम्हि जहण्णखेत्तुवलंभादो। सिया अजहण्णा, अण्णत्थ अजहण्णखेत्तदंसणादो । सिया सादिया, पज्जवट्ठियणए अवलंबिज्जमाणे सव्वलेताणं सादित्तुवलंभादो । सिया अणादियां, दव्वट्टियणए अवलंबिज्जमाणे अणादित्तदंसणादो । सिया धुवा, दवट्ठियणयं पडुच्च णाणावरणीयखेत्तस्स सव्वलोगस्स धुवत्तुवलंभादो । सिया अद्धवा. पज्जवट्रियं पडच्च अदवत्तदंसणादो। सिया ओजा, कत्थ वि खेत्तविसेसे कलितेजोजसंखाविसेसाणमुवलंभादो । सिया जुम्मा, कत्थ वि खेत्तविसेसे कद-बादरजुम्माणं संखाविससाणमुवलंभादो । सिया ओमा, कत्थ वि खेत्तविसेसे परिहाणिदसणादो। सिया विसिट्ठा, कत्थ वि वड्डिदंसणादो । सिया णोम-णोविसिट्ठा, कत्थ वि वड्डि-हाणीहि विणा खेत्तस्स अवट्ठाणदसणादो | १३| ।
संपहि बिदियसुत्तत्थो उच्चदे । तं जहा- उक्कस्सणाणावरणीयवेयणा जहण्णा अणुक्कस्सा च ण होदि, पडिवक्खत्तादो । सिया अजहण्णा, जहण्णादो उवरिमासेसखेत्तवियप्पावहिदे अजहण्णे उक्कस्सस्स वि संभवादो । सिया सादिया, क्षेत्रकी अपेक्षा कथंचित् उत्कृष्ट है, क्योंकि, आठ राजुओंमें मारणान्तिक समुद्घातको करनेवाले महामत्स्यके उत्कृष्ट क्षेत्र पाया जाता है । कथंचित् वह अनुत्कृष्ट है, क्योकि, महामत्स्यको छोड़कर अन्यत्र अनुत्कृष्ट क्षेत्र देखा जाता है। कथंचित जघन्य है, क्योंकि, त्रिसमयवर्ती आहारक व त्रिसमयवर्ती तद्भवस्थ सूक्ष्म निगोद जीवके जघन्य क्षेत्र पाया जाता है। कथंचित् वह अजघन्य है, क्योंकि, उक्त सूक्ष्म निगोद जीवको छोड़कर अन्यत्र अजघन्य क्षेत्र देखा जाता है। कथंचित् वह सादिक है. क्योकि, पयायाथिक नयका आश्रय करने पर सब क्षेत्रोके सादिता पार्य जाती है। कथंचित् वह अनादिक है, क्योंकि, द्रव्यार्थिक नयका आश्रय करनेपर अनादिपना देखा जाता है । कथंचित् वह ध्रुव है, क्योंकि, द्रव्यार्थिक नयकी अपेक्षा शानावरणीय कर्मका क्षेत्र जो सब लोक है वह ध्रुव देखा जाता है । कथंचित् वह अधव है, क्योंकि, पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा उक्त क्षेत्र के अध्रुवपना भी देखा जाता है। कथंचित् वह ओज है, क्योंकि, किसी क्षेत्रविशेषमें कलिओज और तेजोज संख्याविशेष पायी जाती हैं । कथंचित् वह युग्म है, क्योंकि, किसी क्षेत्रविशेषमें कृतयुग्म
और बादरयुग्म ये विशेष संख्यायें पायी जाती हैं। कीचत् वह ओम है, क्योंकि, किसी क्षेत्रविशेषमें हानि देखी जाती है। कर्थचित् वह विशिष्ट है, क्योंकि, कहीं वृद्धि देखी जाती है। कथंचित् वह नोम-नोविशिष्ट है, क्योंकि, कहींपर वृद्धि और हानिके विना क्षेत्रका अवस्थान देखा जाता है (१३)।
____ अब द्वितीय सूत्रका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है-उत्कृष्ट ज्ञानावरणीयघेदना जघन्य और अनुत्कृष्ट नहीं है, क्योंकि, वे उसके प्रतिपक्षभूत हैं। कथंचित् पाह अजयल्प भी है, क्योंकि, जघन्यसे ऊपरके समस्त विकल्पोंमें रहनेवाले अजघन्य पदमें उत्कृष्ट पद भी सम्भव है। कथंचित् वह सादिक भी है, क्योंकि, अनुस्कृष्ट
१ प्रतिषु 'अद्ध ' इति पाठः। २ ताप्रतौ ' अणादि' इति पाठः । ३ म-काप्रत्योः 'जहण्णा अजहूण्णा', ताप्रतौ 'जहण्णाजहण्णा' इति पाठः |
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