Book Title: Shatkhandagama Pustak 11
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वेदणाखंड
[१, २, ५, ४. एत्थ णाणावरणग्गहणेण सेसकम्माण पडिसेहो कदो । दव्व-काल-भावादिपडिसेहई खेत्तणिदेसो कदो । एदं पुच्छासुत्तं देसामासियं, तेण अण्णाओ णव पुच्छाओ एदेण सूचिदाओ। तम्हा णाणावरणीयवेयणा किमुक्कस्सा, किमणुक्कस्सा, किं जहण्णा, किमजहण्णा, किं सादिया, किमणादिया, किं धुवा, किमडुवा, किमोजा, किं जुम्मा, किमोमा, किं विसिट्ठा, किं णोम-णोविसिट्ठा त्ति वत्तव्वं । एवं णाणावरणीयवेयणाए विसेसाभावेण सामण्णरूवाए सामण्णं' विसेसाविणाभावि त्ति कट्ट तेरस पुच्छाओ परूविदाओ । एदेणेव सुत्तेण सूचिदाओ अण्णाओ तेरसपदविसयपुच्छाओ वत्तव्वाओ। तं जहा- उक्कस्सा णाणावरणीयवेयणा किमणुक्कस्सा, किं जहण्णा, किमजहण्णा, किं सादिया, किमणादिया, किं धुवा, किमडुवा, किमोजा, किं जुम्मा, किमोमा, किं विसिट्ठा, किं गोम-णोविसिवा त्ति बारस पुच्छाओ उक्कस्सपदस्स हवंति । एवं सेसपदाणं पि बारस पुच्छाओ पादेक्कं कायवाओ । एत्थ सव्वपुच्छासमासो एगूणसत्तरिसदमेत्तो । १६९/ तम्हा एदम्हि देसामासियसुत्ते अण्णाणि तेरस सुत्ताणि दहव्वाणि त्ति।
उक्कस्सा वा अणुक्कस्सा वा जहण्णा वा अजहण्णा वा ॥४॥
एदं पि' देसामासियसुत्तं । तेणेत्थ सेसणवपदाणि वत्तव्वाणि । देसामासियत्तादो चेव सेसतेरससुत्ताणमस्थ अंतभावो वत्तव्यो । तत्थ ताव पढमसुत्तपरूवणा कीरदे । तं जहा
सूत्र में शानावरण पदका ग्रहण करके शेष कर्मोका प्रतिषेध किया गया है। द्रव्य, काल और भाव आदिका प्रतिषेध करनेके लिये क्षेत्रका निर्देश किया है। यह पृच्छासूत्र देशामर्शक है, इसलिये इसके द्वारा अन्य नौ पृच्छाएं सूचित की गई हैं। इस कारण ज्ञानावरणकी वेदना क्या उत्कृष्ट है, क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है, क्या अजघन्य है, क्या सादिक है, क्या अनादिक है, क्या ध्रुव है, क्या अध्रुव है, क्या ओर है, क्या युग्म है, क्या मोम है, क्या विशिष्ट है, और क्या नोम-नोविशिष्ट है, ऐसा कहना चाहिये । इस प्रकार सामान्य चूंकि विशेषका अविनाभावी है अतः विशेषका अभाव होनेसे सामान्य स्वरूप ज्ञानावरणीयवेदनाके विषय में इन तेरह पृच्छाओंकी प्ररूपणा की गई है। इसी सूत्रसे सूचित अन्य तेरह पद विषयक पृच्छाओंको कहना चाहिये। यथा- उत्कृष्ट झानावरणवेदना क्या अनुत्कृष्ट है, क्या जघन्य है, क्या अजघन्य है, क्या सादिक है, क्या अनादिक है, क्या धुव है, क्या अध्रुव है, क्या ओज है, क्या युग्म है, क्या ओम है, क्या विशिष्ट है, और क्या नोम-नोविशिष्ट है, ये बारह पृच्छाएं उत्कृष्ट पदके विषयमें होती हैं। इसी प्रकार शेष पदों से भी प्रत्येक पदके विषयमें बारह पृच्छाएं करना चाहिये । यहां सब पृच्छाओंका जोड़ एक सौ उनत्तर (१६९) मात्र होता है। इसी कारण इस देशामर्शक सूत्रमें अन्य तेरह सूत्रोंको देखना चाहिये।
उक्त वेदना उत्कृष्ट भी है, अनुत्कृष्ट भी है, जघन्य भी है, और अजघन्य भी है ॥४॥
यह भी देशामर्शक सूत्र है । इसलिये यहां शेष नौ पदोंको कहना चाहिये। देशामर्शक होनेसे ही इस सूत्रमें शेष तेरह सूत्रोंका अन्तर्भाव कहना चाहिये। उनमें पहिले प्रथम सूत्रकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-शानावरणीयकी वेदना
१ प्रतिषु ' सामण्ण' इति पाठः। २ प्रतिषु एवं दि' इति पाठः।
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