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सरस्वती
[भाग ३८
मृणालवती- यह तुम क्या कह रहे हो मुंज ? मेरा भाई मुंज-किसलिए छोड़ दूँ ? मैं नहीं जानता था कि
क्षत्रियत्व को लजानेवाला कायर है ? तुम्हें पता है कि तुम्हारा भाई ऐसा कसाई है। और वह युद्ध में पकड़े इस समय तुम किसके सामने बोल रहे हो ?
गये अपने ही जैसे नरेश के साथ ऐसा बर्ताव करेगा। मुंज (हँसते हुए)-हाँ, हाँ, मृणालवती ! यह मत सम- मृणालवती--मेरी अशान्त आत्मा को अपने नीच शब्दों
झना कि मुंज कारागृह के दुःख से ज्ञान-बुद्धि खो से अधिक अशान्त न करो। बैठा है। मैं पूर्णतया ज्ञान-बुद्धि में ही हूँ। मैं अच्छी मुंज-अहा ! हा ! हा !! हा !!! तरह जानता हूँ कि मुंज इस समय तैलंगण के कारा- मृणालवती-अगर अधिक बोला तो मुंज-तेरी जीभ गृह में तैलप की बहन से बात-चीत कर रहा है। खींच लूंगी। याद रख, कल तू कुत्ते की मौत से मारा सम्पूर्ण तैलंगण की नगरी को रसहीन बनानेवाली जायगा। तेरे मांस के टुकड़ों से कौए-कुत्ते-गीधों मृणालवती से बात कर रहा है।
का पेट भरेगा। मृणालवती (क्रोध से लाल-पीली होकर)-तैलंगण को मुंज-(हँसता हुआ) वाह ! डर तो बहुत बड़ा दिखाया।
रसहीन बनाने का आक्षेप करनेवाले तथा मेरे विजयी मुंज, मौत से कभी नहीं डरता। मौत को तो मुट्ठी में बन्धु का अपमान करनेवाले मुंज कैदी, सोच-समझ- लिये फिरता है । युद्ध-क्षेत्र में तुम्हारे दस सैनिकों का कर ही ज़बान खोल, अंधा मत बन ।
एक ही तलवार के झटके से सिर उतारनेवाले मुंज मुंज-मुंज जो कुछ कहता है. समझकर-विचारकर ही को कहीं मृत्यु का भय हो सकता है ? मंज जैसे यशस्वी
कहता है। अकेले तुम्हीं ने सम्पूर्ण नगरी को रसहीन को तो मृत्यु ही शोभा देती है। बना दिया है। रस और रसिकता का क्या अर्थ है, मृणालवती---यह सब ज़बानी जमा-खर्च है। जब काल इस बात का तुमने अपनी सत्ता के बल से, सत्ता के प्रत्यक्ष दिखाई देगा तब देखूगी तेरी शूर-वीरता। नशे में श्राकर बेचारी प्रजा को भान ही नहीं होने मुंज-अच्छा! तुम्हें मेरी शूर-वीरता देखनी है ? यदि दिया है।
शूर-वीरता देखनी हो तो इन लौह-शृंखलानों को मृणालवती-इसमें मैंने क्या बुरा किया ? रस, गान-तान खुलवा दो, और लाश्रो एक तलवार । फिर बुलाश्रो
तथा मौज-शौक़ पर मैंने प्रतिबन्ध लगाये हैं, इसमें अपने भाई को या और जो कोई बलवान् योद्धा हो क्या अनुचित हुश्रा ? रस, गान-तान तथा विलास- तुम्हारे राज्य में ! फिर देखो मेरा रण-स्वरूप ! सिंह वैभव से लोग कमज़ोर हो जाते हैं, शौर्यहीन हो को दुःखी करने से या कैद में रखने से वह बकरा जाते हैं।
नहीं बन जाता, और न अपनी माता का दूध ही भल मुंज-शाबाश मृणालवती! शाबाश तुम्हें ! तभी तो जाता है, प्रचंड सूर्य के सामने धूल उड़ाने से कहीं
तुम्हारे भाई ने सोलह सोलह बार चढ़ाई करके हारने उसका तेज घटता है ? __ का कलंक सिर पर मढ़ा ?
मृणालवती--अो अहंकार के मद में चूर नृपति ! ईश्वर मृणालवती—दो पक्ष लड़ेंगे तो उसमें एक की विजय, दूसरे ने समझ-बूझ कर ही तुम्हारा गर्व चूर किया है।
की हार होनी स्वाभाविक है। यह विश्व में चला मुंज-ऐसा मत समझो कि मुंज अभिमानी है। मुंज के अानेवाला एक अटल नियम है।
हृदय में अभिमान का तिलमात्र स्थान नहीं है। मुंज-अगर यही समझा होता तो आज आठ-आठ दिन मृणालवती-(स्वगत) कैसी इस पुरुष में मोहकता है ?
से मुझे कैद में न सड़ाया होता, मुझे दुःखी न इसकी बोलने की कैसी छटा है ? मेरी अात्मा आज करते।
क्यों इसके प्रति आकर्षित हो रही है ? इसके प्रति प्रेम मृणालवती-क्या तुम्हें कैद में दुःख होता है ? तब क्या प्रकट करना चाहती है ? (कुछ क्षण बाद) कुछ नहीं
तुम्हें इस कारागृह में राज-वैभव चाहिए ? वाह ! यह तो सहज मन की कमजोरी है, (प्रकट में-मुंज वाह ! मुंज यह सब अाशा छोड़ देनी होगी।
से) मुझे पहले तुम्हें बोलना सिखलाना पड़ेगा।
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