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व्याघ्रेरवालवरवंशसरोजहंसः काव्यामृतौघरसपानसुतृप्तगात्रः ।
सल्लक्षणस्य तनयो नयविश्वचक्षु-
राशा
विजयतां कलिकालिदासः ॥ ३ ॥
अर्थात् - जो बघरवालों के श्रेष्ठवंशरूपी सरोवरसे उत्पन्न हुआ हंस है, काव्यामृत पानसे जिसका हृदय तृप्त है, जो सम्पूर्ण नयका जाननेवाला है और जो श्रीसल्लक्षणका पुत्र है, वह कलियुगका कालिदास आशाधर जयवन्त होवे ।
इसी प्रकारसे श्रीमदनकीर्तिमुनिने कहा था किइत्युदयसेनमुनिना कविसुहृदा योऽभिनन्दितः प्रीत्या । प्रज्ञापुञ्जसीति च योऽभिहितो मदनकीर्तियतिपतिना ॥ ४ ॥ " अर्थात् आप प्रज्ञा के पुंज हैं अर्थात् विद्या के भंडार हैं । "
इन दोनों विद्वानों में से हमको उदयसेनके विषय में तो केवल इतना ही मालूम है कि वे कविके मित्र थे और मदनकीर्तिके विषयमें इससे अधिक और कुछ नहीं कहा जा सकता कि वे एक 'यतिपति' वा जैन मुनि थे । मदनोपाध्याय वा बालसरस्वती 'मदन' से कुछ नामसाम्य देखकर भ्रम होता है कि मदनकीर्ति और मदनोपाध्याय ( राजगुरु ) एक होंगे । परन्तु इसके लिये कोई संतोषप्रद प्रमाण नहीं |