________________
-
राजाकी कन्या शशिकलाके साथ बिल्हणका प्रेमसम्बन्ध होना वर्णित है, वह विक्रमसंवत् ९०० के लगभग हुआ है। इससे आशाधरके समयके साथ उसका भी ठीक नहीं बैठ सकता है।
शार्ङ्गधरपद्धति और सूक्तमुक्तावली आदि सुभाषित ग्रन्थों में बिल्हण कविके नामसे बहुतसे श्लोक ऐसे मिलते हैं, जो न तो विद्यापति बिल्हणके विक्रमांकदेवचरित तथा 'कर्णसुन्दरी नाटिकामें हैं और न बिल्हणचरितमें हैं। क्या आश्चर्य है, जो उनके बनानेवाले आशाधरकी प्रशंसाकरनेवाले बिल्हण ही हों। ___आशाधरने अपनी प्रशंसा करनेवाले दो विद्वानोंके नाम | और भी लिखे हैं, जिनमेंसे एकका नाम उदयसेन और दूसरेका | नाम मदनकीर्ति है । ये दोनों ही दिगम्बर मुनि थे। क्योंकि इनके नामके साथ मुनि और यतिपति विशेषण लगे हुए हैं । देखिये, उदयसेन क्या कहते हैं:
१. कर्णसुंदरीनाटिकाके मंगलाचरणमें जिनदेवको नमस्कार किया गया है । इसका कारण यह नहीं हैं कि विद्यापति बिल्हण जैनी थे। किन्तु उक्त नाटिका अणहिलपाटनके राजा कर्णके जैन मंत्री सम्पत्करके बनवाये हुए आदिनाथ भगवान्के यात्रामहोत्सवपर खेलनेके लिये बनाई गई थी, इसलिये उसमें जिनदेवको नमस्कार करना ही उन्होंने उचित समझा होगा। पीछेसे अपने इष्टदेव शिवपार्वतीको भी नमस्कार किया है।