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भाने विद्वानोंको चाकेत स्तंभित कर दिया। विन्ध्यवर्माके सान्धि. वैग्रहिक मंत्री (फारेन सेक्रेटरी)बिल्हण नामके एक महाकवि थे। उन्होंने आशाधरकी विद्वत्तापर मोहित होकर एकवार निम्नलिखित श्लोक कहा था,-- ____ "आशाधर त्वं मयि विद्धि सिद्धं निसर्गसौन्दर्य्यमजर्यमार्य । सरस्वतीपुत्रतया यदेतदर्थे पर वाच्यमयं ' प्रपञ्चः॥"
जिसका आशय यह है कि “ हे आशाधरः! तथा हे आर्य ! | तुम्हारे साथ मेरी स्वाभाविक सहोदरपना (भ्रातृत्व) और श्रेष्ठ मित्रपना है। क्योंकि जिस तरह तुम सरस्वतीके (शारदाके) पुत्र हो उसी तरह मैं भी हूं। एक उदरसे पैदा होनेवालोंमें मित्रता और भाईपना होता ही है।" इस श्लोकसे इस बातका भी पता लगता है कि आशाधर कोई सामान्य पुरुष नहीं थे। एक बड़े भारी राज्यके महामंत्रीकी जिनके साथ इतनी गाढ़ मित्रता थी, उनकी प्रतिष्ठा थोड़ी नहीं समझना चाहिये । उक्त बिल्हण कविका उल्लेख मांडूके एक खंडित शिलालेखमें है। उसे छोडकर न तो उनका बनाया हुआ कोई ग्रन्थ मिलता है और न आशाधरको छोडकर उनका किसीने उल्लेख किया है । ऐसे राजमान्य प्रतिष्ठित कविकी जब यह दशा है तब पाठक सोच सकते हैं कि कालकी कुटिल गतिने
१–इत्युपश्लोकितो विद्वाद्विल्हणेन कवीशिना ।
श्रीविन्ध्यभूपतिमहासान्धिविग्रहकेण यः॥७॥