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(५) क्योंकि अजमेर पृथ्वीराजके ही अधिकारमें था और उसी समय अर्थात् सन् ११९३ ईस्वीमें सपादलक्षदेश शहाबुद्दीनके अत्याचारोंसे व्याप्त हो गया होगा। यही समय पंडितप्रवर आशाधरके मांडलगढ़ छोडकर धारा नगरीमें आनेका निश्चित होता है।
मांडलगढ़से धारानगरीमें आ बसनेके पश्चात् पंडित आशाधरने एक महावीर नामके प्रसिद्ध पंडितसे जैनेन्द्रप्रमाण और जिनेन्द्रव्याकरण इन दो ग्रन्थोंका अध्ययन किया। आशाधरके गुरु पं. महावीर, वादिराज पंडित धरसेनके शिष्य थे। प्रसिद्ध विद्याभिलाषी महाराजा भोजको मरे हुए यद्यपि उन दिनों १५० वर्ष बीत चुके थे, तो भी धारानगरीमें संस्कृत विद्याका अच्छा प्रचार था । उन दिनों संस्कृतके कई नामी नामी विद्वान् हो गये हैं जिनमें वादीन्द्र विशालकीर्ति, देवचन्द्र, महाकवि | मदनोपाध्याय, कविराज बिल्हण (मंत्री), अर्जुनदेव, केल्हण, । आशाधर आदि मुख्य गिने जाते हैं।
वि० संवत् १२४९में जब कि पंडित आशीधर धारामें आये होंगे, उनकी अवस्था अधिक नहीं होगी। क्योंकि धारामें आनेके पश्चात् उन्होंने न्याय और व्याकरण शास्त्र पढ़े थे। हमारी समझमें उस समय उनकी अवस्था २० वर्षके भीतर भीतर होगी । और इस हिसाबसे उनका जन्म वि० सं० | १२३०-३५ के लगभग हुआ होगा, जैसा कि हम पहले | लिख चुके हैं।