Book Title: Rajasthani Hindi Shabdakosh Part 01
Author(s): Badriprasad Sakariya, Bhupatiram Sakariya
Publisher: Panchshil Prakashan
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प्रनथ-नथे प्रनख
( ३८ ) अनख-(न०) १. क्रोध । २. ईर्ष्या । है परन्तु कहा जाता है कि मैडागास्कर ३. दुख ।
के प्राणी संग्रहालय (ज) में एक पक्षी अनग-(वि०) १. मूढ़ । २. मोहित । Pterodactyls की हड्डियों के विशाल __३. आश्चर्य चकित ।
ढाँचे को रखने के लिए ही एक बड़ा अनघ-(वि०) निष्पाप ।
कमरा खास तौर से बनाया गया है। अनघड़-दे० अणघड़ ।
जिसमें उसे देखने को सजाया गया है)। अनचर-(न0) थलचर जीवों में वे जो अनड़पंखचर-(न०) हाथी । पटाझर ।
अन्नजीवी हैं। अन्नचर । अन्नजीवी। अनड़मेर-(न०) सुमेरू पर्वत । मेरगिर । मनुष्य ।
अनडर-(वि०) अडर । निडर । अनजळ-(न०) १. अन्नजल । दाना पानी। अनड़वान-(न०) १. बैल । बळव । २. २. जीविका । ३. संयोग ।
पर्वतवासी। अनज्ज-(न०) अनार्य ।
अनड़हेम-(न०) १. स्वर्णगिरि । सोनअनड़-(न०) १. पर्वत । २. दुर्ग । किला। गिर । २. हिमालय ।
३. द्रोणाचल । ४. अनड़पक्षी । ५. राजा। अनडाँ-अनड-(वि०) १. उद्दड़ों को दंड ६. हाथी । (वि०) १. वीर । बलवान । देने वाला । २. वीर । जोरावर । २. नहीं झुकने वाला । अनम्र । उद्दड । अनडाँनड़-दे० अनडाँ-अनड़ । ३. बंधन रहित ।
अनड़ी-(वि०) १. अनाड़ी। २. मूर्ख । अनड़नड़-(वि०) उद्दडों को सर करने (ना.) १. अनाड़ीपन । २. मूर्खता । वाला।
अनडीठ-(वि०) अदृष्ट । बिना देखा । अनड़ाडो-(वि०) अरावली पर्वत । प्रदीठ । पाडावळो।
अनडुह-(न०) बैल । बळव । अनड़पंख--(न०) एक बहुत बड़ा और अनडू-(न०) बैल । बळद । बलवान पक्षी। भारंड । अनलपंख । अनद--(न०) गढ़ । किलो । दुर्ग । इसके संबंध में ऐसी किंवदंती है कि यह अनत-(वि०) १. अनंत । २. दूसरा । सदैव आकाश में ही उड़ता रहता है। ३. नहीं झुकने वाला । ३. असीम । हाथियों के झुड के ऊपर आकाश में ही (न०) १. विष्णु । २. अनंत भगवान् । अंडा देता है और भूमि पर पहुँचने से ३. ईश्वर । ४. महादेव । (क्रि० वि०) पहले ही वह फूट जाता है बच्चा अंडे से अन्यत्र । निकल कर अपनी चोंच या पंजों में हाथी अनतद्वार-(न०) १. विष्णु लोक । स्वर्ग । को पकड़कर ऊपर उड़ जाता है । जिस अनता-(ना०) पृथ्वी । प्रकार गरुड़ सॉं का शत्रु माना जाता अनथ-वि०) १. वह जिसके नाथ नहीं है उसी प्रकार यह हाथियों का शत्रु माना डाली जा सकी हो। २. जो किसी के जाता है । कवि-प्रसिद्धि में भी ऐसे वश में नहीं हो सका हो। ३. उन्मुक्त । उल्लेख मिलते हैं, यथा--'धर जहर ४. उद्दड । ५. निरंकुश । ६. बिना नथ देखिया गुरड़ घंख, पेखिया पटाझर का। अनड़पंख ।' यह केवल कवि-प्रसिद्धि अनथ-नथ-(वि०) १. वश में नहीं होने (कवि समय की ही बात मानी जाती वालों को वश में करने वाला । पराजित
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