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प्रवचन-सारोद्धार
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-विवेचन(i) आचार्य-आधाकर्मी आदि दोष रहित या सहित आहार पानी के द्वारा साधु या श्रावक यावज्जीवपर्यन्त आचार्य की सेवा कर सकते हैं।
• गच्छ के अधिपति होने से । • सतत सूत्र-अर्थ के चिन्तन में प्रवृत्त रहने से।
(ii) वृषभ-उपाध्याय आदि गीतार्थ मुनियों की शुद्ध या अशुद्ध आहार पानी और वस्त्रादि द्वारा बारह वर्ष तक सेवा की जा सकती है।
• पश्चात्-अनशन करे (शक्ति हो तो) • बारह वर्ष में गच्छ का भार वहन करने वाला दूसरा तैयार हो सकता है। (iii)सामान्य साधु-सामान्य मुनि की सेवा अठारह मास तक की जा सकती है। • पश्चात्–शक्ति हो तो अनशन करे।
शुद्ध अशुद्ध अन्नादि से आचार्य आदि की सेवा, रोग, अकाल, क्षेत्र-काल आदि की हानि के कारण गौचरी न मिलती हो इत्यादि आगाढ कारण में ही करना कल्पता है अन्यथा नहीं। व्यवहारभाष्य के मतानुसार" व्यवहार भाष्य के अनुसार सभी ग्लान की सेवा का एक ही प्रकार है। पहिले आचार्य छ: महीने तक ग्लान की चिकित्सा करावे। यदि ठीक न हो तो उसे कुल को सौंपे । कुल, तीन वर्ष तक उसकी चिकित्सा करावे, यदि ठीक न हो तो रोगी को गण को सौंपे । गण एक साल तक ग्लानमुनि का उपचार करावे, ठीक न हो तो अन्त में उसे संघ को सौंपे। संघ प्रासुक आहार पानी से यावज्जीव उसकी सेवा करे। प्रासुक आहार पानी के अभाव में अप्रासुक से भी उसकी सेवा करे (यदि रोगी की अनशन करने की स्थिति न हो तो अप्रासुक से सेवा करे, अन्यथा नहीं)।
यदि रोगी की अनशन करने की स्थिति हो तो पहिले अठारह महीना उसकी चिकित्सा करावे । क्योंकि विरतिमय जीवन मिलना अतिदुर्लभ है। ठीक न हो तो अनशन ग्रहण करे ।।८६३ ।।
|१३१ द्वार:
उपधि-प्रक्षालन
अप्पते च्चिय वासे सव्वं उवहिं धुवंति जयणाए। असईए उदगस्स उ जहन्नओ पायनिज्जोगो ॥८६४ ॥ आयरियगिलाणाणं मइला मइला पुणोवि धोइज्जा। मा हु गुरूण अवण्णो लोगम्मि अजीरणं इअरे ॥८६५ ॥
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