Book Title: Pravachana Saroddhar Part 2
Author(s): Hemprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 438
________________ प्रवचन-सारोद्धार ४२१ 13050001:154: : 221005006652003052100500500056002005056451401602065202010 पश्चात् पश्चानुपूर्वी के क्रम से एक-एक उपवास के अन्तर सहित सोलह से एक तक उपवास करना। साठ पारणे होते हैं। इस प्रकार चार लतायें मिलकर चार वर्ष में मुक्तावली तप पूर्ण होता है ।।१५२३-२४ ।। एक, दो, तीन उपवास काहलिका में, दाडिमपुष्प में आठ तीन उपवास, दोनों सरों में एक से लेकर यावत् सोलह पर्यंत पृथक्-पृथक् उपवास होते हैं। अन्त में पदक में एक, पाँच, सात, सात, पाँच, पाँच, तीन और एक-इस प्रकार अट्ठमों की रचना होती है। इस तप में अट्ठयासी पारणे होते हैं। इस तप में चार लताओं के मिलाकर पाँच वर्ष, नौ महीने और अट्ठारह दिन होते हैं। यह रत्नावली तप है ।।१५२५-२७ ॥ रत्नावली के अनुसार ही कनकावली तप होता है। परन्तु इतना अंतर है कि दाडिमपुष्प तथा पदक में तीन उपवास के स्थान पर दो-दो उपवास करने होते हैं। यह तप चार लताओं से, पाँच वर्ष, तीन मास (दो दिन न्यून) में पूर्ण होता है। लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप के अनुसार पाँचों ही तप में पारणे की विधि समझना चाहिये ।।१५२८-२९ ।। भद्रादि चार तपों में से पहिले भद्रतप बताया जाता है। भद्रतप में प्रथम परिपाटी में क्रमश: एक, दो, तीन, चार और पाँच उपवास होते हैं। द्वितीय परिपाटी में क्रमश: तीन, चार, पाँच, एक और दो उपवास होते हैं। तृतीय परिपाटी में पाँच, एक, दो, तीन, चार उपवास होते हैं। चतुर्थ परिपार्टी में दो, तीन, चार, पाँच तथा एक उपवास एवं पंचम परिपाटी में चार, पाँच, एक, दो और तीन उपवास होते हैं। इस प्रकार पचहत्तर उपवास और पच्चीस पारणे से यह तप पूर्ण होता है ।।१५३०-३१॥ अब महाभद्र तप का वर्णन करते हैं। पहिली परिपाटी में एक, दो, तीन, चार, पाँच, छ: और सात उपवास। दूसरी परिपाटी में चार, पाँच, छ:, सात, एक, दो और तीन उपवास । तीसरी परिपाटी में सात, एक, दो, तीन, चार, पाँच और छ: उपवास। चौथी परिपाटी में तीन, चार, पाँच, छः, सात, एक और दो उपवास। पाँचवीं परिपाटी में छ:, सात, एक, दो, तीन, चार और पाँच उपवास। छट्ठी में दो, तीन, चार, पाँच, छ:, सात और एक उपवास तथा सातवीं परिपाटी में पाँच, छ:, सात, एक, दो, तीन और चार उपवास होते हैं। इस प्रकार इस तप में उनपचास पारणे व एक सौ छन्नु उपवास होते हैं ।।१५३२-३४ ।। भद्रोत्तर तप की पहिली लता में क्रमश: पाँच, छ:, सात, आठ, नौ उपवास। दूसरी में सात, आठ, नौ, पाँच, छ: उपवास। तीसरी में नौ, पाँच, छ:, सात, आठ उपवास। चौथी में छ:, सात, आठ, नौ, पाँच, उपवास तथा पाँचवीं में आठ, नौ, पाँच, छ: और सात उपवास होते हैं। इस प्रकार पचहत्तर उपवास और पच्चीस पारणों से तप पूर्ण होता है ।।१५३५-३६ ॥ सर्वतोभद्र प्रतिमा की पहिली लता में-पाँच, छ:, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह उपवास। दूसरी में आठ, नौ, दस, ग्यारह, पाँच, छ, सात उपवास। तीसरी में ग्यारह, पाँच, छ:, सात, आठ, नौ, दस उपवास । चौथी में सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह, पाँच और छ: उपवास। पाँचवीं में दस, ग्यारह पाँच, छ:, सात, आठ और नौ उपवास । छट्ठी में छ:, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह एवं पाँच उपवास । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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