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द्वार २७४-२७५
• अनार्य देशों का वातावरण उत्कटकषाय वाला होने से जीवों को रौद्रकर्म का प्रेरक है अत:
ये देश ‘चण्डकर्मा' कहलाते हैं। • क्षेत्रज स्वभाव के कारण यहाँ के निवासी लोगों में पाप के प्रति लेशमात्र भी घृणा नहीं
होती अत: ये देश ‘निघृण' कहलाते हैं। • कुकृत्य करने पर भी यहाँ के लोगों में लेशमात्र भी पश्चात्ताप नहीं होता अत: ये देश
'निरनुतापी' हैं। • जिस देश में 'धर्म' इतने अक्षर देखने-सुनने को स्वप्न में भी नहीं मिलते, जो अपेय का
पान, अभक्ष्य का भक्षण, अगम्या का गमन करने वाले, शास्त्रविरुद्ध वेष-भाषा व आचार वाले
हैं वे सभी अनार्य देश हैं। पूर्वोक्त नामों के अतिरिक्त अन्य भी देश अशिष्ट आचार वाले होने से अनार्यदेश की गणना में आते हैं। प्रश्नव्याकरणादि ग्रन्थों में ऐसे देशों का वर्णन है। विस्तृत ज्ञान के लिये वे ग्रंथ देखना चाहिये ॥१५८३-८६ ॥
२७५ द्वार :
आर्यदेश
रायगिह मगह चंपा अंगा तह तामलित्ति वंगा य। कंचणपुरं कलिंगा वणारसी चेव कासी य ॥१५८७॥ साकेयं कोसला गयपुरं च कुरु सोरियं कुसट्टा य। कंपिल्लं पंचाला अहिछत्ता जंगला चेव ॥१५८८ ॥ बारवई य सुरट्ठा मिहिल विदेहा य वच्छ कोसंबी। नंदिपुरं संडिल्ला भद्दिलपुरमेव मलया य ॥१५८९ ॥ वइराड मच्छ वरुणा अच्छा तह मत्तियावइ दसन्ना। सोत्तीमई य चेई वीयमयं सिंधुसोवीरा ॥१५९० ॥ महुरा य सूरसेणा पावा भंगी य मासपुरी वट्टा। सावत्थी य कुणाला कोडीवरिसं च लाढा य ॥१५९१ ॥ सेयवियाविय नयरी केयइअद्धं च आरियं भणियं । जत्थुप्पत्ति जिणाणं चक्कीणं रामकण्हाणं ॥१५९२ ॥
-विवेचनआर्यदेश
आर्यदेश = जिन देशों में तीर्थंकर चक्रवर्ती, बलदेव व वासुदेवों की उत्पत्ति होती है वे आर्यदेश हैं। अन्य सभी देश अनार्य हैं। यह आर्य-अनार्य की व्यवस्था है।
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