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बीयासु मासेसुं कुज्जा एगुत्तराए बुड्ढी । जा सोलसमे सोलस उववासा हुंति मासंमि ॥१५६८ ॥
जं पढमगंमि मासे तमणुट्ठाणं समग्गमासेसु ।
पंच सयाई दिणाणं वीसूणाई इमंमि तवे ॥ १५६९ ॥
तह अंगोवंगाणं चिइवंदणपंचमंगलाईणं ।
उवहाणाइ जहाविहि हवंति नेयाइं तह समया ॥१५७० ॥ -गाथार्थ
द्वार २७१
तप - - पुरिमड्ड, एकाशन, निवि, आयंबिल और उपवास - यह एक लता हुई। ऐसी पाँच लताओं द्वारा इन्द्रियजय तप पूर्ण होता है ।। १५०९ ।।
निवि, आयंबिल, उपवास - यह एक लता (बारी) हुई। ऐसी तीन लताओं के द्वारा योगशुद्धि तप पूर्ण होता है । यह तप नौ दिन का है । १५१० ॥
ज्ञान- दर्शन और चारित्र इन तीनों की तीन-तीन उपवास द्वारा आराधना करके ज्ञानादि की पूजा करना यह रत्नत्रय तप है ।। १५११ ।।
एकाशन, निवि, आयंबिल और उपवास यह एक लता हुई। इस प्रकार चार कषाय की चार लता द्वारा आराधना करना कषायजय तप है ।। १५१२ ।।
उपवास, एकाशन, एक दाना, एकल ठाणा, एक दत्ति, निवि, आयंबिल एवं आठ कवल यह एकता हुई। इस प्रकार आठ कर्म की आठ लताओं के द्वारा चौसठ दिन में पूर्ण होने वाला ' अष्टकर्मसूदन तप जिनेश्वर भगवन्त ने बताया है ।। १५१३-१४ ।।
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एक, दो, एक, तीन, दो, चार, तीन पाँच, चार, छः पाँच, सात, छः, आठ, सात, नौ, आठ, नौ, सात, आठ, छ:, सात, पाँच, छ, चार, पाँच, तीन, चार, दो, तीन, एक, दो और एक उपवास - यह लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप की एक परिपाटी है। एक परिपाटी में एक सौ चौवन उपवास तथा तेत्तीस पार होते हैं। इस प्रकार चार परिपाटी करने पर तप पूर्ण होता है । इसमें दो वर्ष और अट्ठावीस दिन लगते हैं । चार परिपाटी में क्रमश: विगययुक्त आहार, निवि, अलेपकृत तथा आयंबिल से पारणा करना चाहिये ।। १५१५ - १५१८ ॥
एक, दो, एक, तीन, दो, चार, तीन, पाँच, चार, छ:, पाँच, सात, छः, आठ, सात, नौ, आठ, दस, नौ, ग्यारह, दस, बारह, ग्यारह तेरह, बारह, चौदह, तेरह, पन्द्रह, चौदह सोलह पन्द्रह सोलह - इस प्रकार पश्चानुपूर्वी के क्रम से एक उपवास पर्यंत तप करना। इन उपवासों के मध्य एक-एक पारणा होता है । यह एक लता हुई । महासिंह निष्क्रीड़ित तप में ऐसी चार लतायें छः वर्ष, दो मास एवं बारह दिन में पूर्ण होती है । १५१९-२२ ।।
एक, दो यावत् सोलह तक उपवास करना। इन उपवासों के मध्य में एक-एक उपवास करना ।
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