Book Title: Pravachana Saroddhar Part 2
Author(s): Hemprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 451
________________ द्वार २७२ ४३४ २७२ द्वार: पातालकलश पणनउइ सहस्साई ओगाहित्ता चउद्दिसि लवणं । चउरोऽलिंजरसंठाणसंठिया होंति पायाला ॥१५७१ ॥ वलयामुह केयूरे जुयगे तह ईसरे य बोद्धवे । सव्ववइरामयाणं कुड्डा एएसि दससइया ॥१५७२ ॥ जोयणसहस्सदसगं मूले उवरिं च होंति विच्छिन्ना। मज्झे य सयसहस्सं तत्तियमित्तं च ओगाढा ॥१५७३ ॥ पलिओवमट्ठिईया एएसिं अहिवई सुरा इणमो। काले य महाकाले वेलंब पभंजणे चेव ॥१५७४ ॥ अन्नेवि य पायाला खुड्डालिंजरगसंठिया लवणे। अट्ठ सया चुलसीया सत्त सहस्सा य सव्वेसिं ॥१५७५ ॥ जोयणसयविच्छिन्ना मूलुवरिं दस सयाणि मज्झमि । ओगाढा य सहस्सं दसजोयणिया य सिं कुड्डा ॥१५७६ ॥ पायालाण विभागा सव्वाणवि तिन्नि तिन्नि बोद्धव्वा । हिट्ठिमभागे वाऊ मज्झे वाऊ य उदगं च ॥१५७७ ॥ उवरिं उदगं भणियं पढमगबीएसु वाउसंखुभिओ। उड्ढे वामे उदगं परिवड्डइ जलनिही खुभिओ ॥१५७८ ॥ परिसंठिअंमि पवणे पुणरवि उदगं तमेव संठाणं । वड्डेइ तेण उदही परिहायइऽणुक्कमेणेव ॥१५७९ ॥ -गाथार्थपातालकलश-चारों दिशाओं से लवण समुद्र के भीतर पंचाणु-पंचाणु हजार योजन जाने पर बड़ी कोठी के आकार वाले चार पातालकलश स्थित हैं ॥१५७१ ॥ वडवामुख, केयूप, यूपक और ईश्वर ये चार पातालकलशों के नाम हैं। सभी पातालकलश वज्रमय हैं और इनकी ठीकरी की मोटाई एक हजार योजन की है। पातालकलश मूल तथा ऊपर में दस हजार योजन विस्तृत हैं। इनका मध्य विस्तार एक लाख योजन का है। एक लाख योजन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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