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रत्नप्रभा
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लवण कलश
जल
जल-वायु
महाकलश
प्रत्येक भाग का
१
प्रमाण ३३३३३
३
वायु ·
१०००० योजन
- १०००० योजन
पृथ्वी
१०००० योजन
लघु पातालकलश
पूर्वोक्त चारों पातालकलशों के अन्तराल में लवण समुद्र में यत्र-तत्र छोटे घड़े के आकार वाले अन्य भी बहुत से लघु पातालकलश हैं। एक-एक महाकलश से सम्बन्धित १९७१ लघु पाताल कलश हैं । चारों महाकलशों का कुल परिवार ७८८४ कलश हैं।
सभी लघु पातालकलशों के अधिपति देव हैं और वे अर्ध पल्योपम की आयु वाले हैं ।
इन कलशों का विस्तार मूल व मुखभाग में १०० योजन, मध्यभाग में १००० योजन तथा ऊँचाई १००० योजन है । इन कलशों की ठीकरी की मोटाई १० योजन प्रमाण है ।। १५७५-७६ ॥
महाकलश व लघुकलश प्रत्येक के ३-३ भाग हैं ।
भाग
१. अधोभाग
२. मध्यभाग
वायु और जल है ।
३. उपरितनभाग योजन है ।
1
जल है।
तथाविध स्वभावतः प्रतिनियत समय में महाकलश व लघुकलश सभी के प्रथम - द्वितीय भाग में अनेक प्रकार के वायु उत्पन्न होते हैं । तदनन्तर उनमें महान संक्षोभ पैदा होता है। इससे उनकी शक्ति अद्भुत हो जाती है और वे वायु बड़े वेग से इधर-उधर फैलते हैं । इससे कलशगत जल भी क्षुब्ध होकर उछलने लगता है । जल के क्षोभ से समुद्र भी क्षुब्ध होकर बढ़ने लगता है। जब वायु उपशान्त हो जाता है तो जल भी यथावस्थित हो जाता है । वायु क्षोभ की यह प्रक्रिया अहोरात्रि में दो बार तथा पक्ष में ८-१४ आदि तिथियों में होती है अत: इस समय समुद्र में ज्वार आता है । पश्चात् शान्त हो जाता है ।
लघुकलश प्रत्येक भाग
३३३ योजन का
द्वार २७२
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