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________________ ४३६ रत्नप्रभा Jain Education International लवण कलश जल जल-वायु महाकलश प्रत्येक भाग का १ प्रमाण ३३३३३ ३ वायु · १०००० योजन - १०००० योजन पृथ्वी १०००० योजन लघु पातालकलश पूर्वोक्त चारों पातालकलशों के अन्तराल में लवण समुद्र में यत्र-तत्र छोटे घड़े के आकार वाले अन्य भी बहुत से लघु पातालकलश हैं। एक-एक महाकलश से सम्बन्धित १९७१ लघु पाताल कलश हैं । चारों महाकलशों का कुल परिवार ७८८४ कलश हैं। सभी लघु पातालकलशों के अधिपति देव हैं और वे अर्ध पल्योपम की आयु वाले हैं । इन कलशों का विस्तार मूल व मुखभाग में १०० योजन, मध्यभाग में १००० योजन तथा ऊँचाई १००० योजन है । इन कलशों की ठीकरी की मोटाई १० योजन प्रमाण है ।। १५७५-७६ ॥ महाकलश व लघुकलश प्रत्येक के ३-३ भाग हैं । भाग १. अधोभाग २. मध्यभाग वायु और जल है । ३. उपरितनभाग योजन है । 1 जल है। तथाविध स्वभावतः प्रतिनियत समय में महाकलश व लघुकलश सभी के प्रथम - द्वितीय भाग में अनेक प्रकार के वायु उत्पन्न होते हैं । तदनन्तर उनमें महान संक्षोभ पैदा होता है। इससे उनकी शक्ति अद्भुत हो जाती है और वे वायु बड़े वेग से इधर-उधर फैलते हैं । इससे कलशगत जल भी क्षुब्ध होकर उछलने लगता है । जल के क्षोभ से समुद्र भी क्षुब्ध होकर बढ़ने लगता है। जब वायु उपशान्त हो जाता है तो जल भी यथावस्थित हो जाता है । वायु क्षोभ की यह प्रक्रिया अहोरात्रि में दो बार तथा पक्ष में ८-१४ आदि तिथियों में होती है अत: इस समय समुद्र में ज्वार आता है । पश्चात् शान्त हो जाता है । लघुकलश प्रत्येक भाग ३३३ योजन का द्वार २७२ For Private & Personal Use Only क्या है ? www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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