________________
प्रवचन-सारोद्धार
३९९
(vii) महामहः-आषाढ़ सुदी १५, आसोजसुदी १५, कार्तिकसुदी १५ तथा चैत्रसुदी १५, इन चारों पूर्णिमा के दिन बड़े-बड़े उत्सव मनाये जाते हैं। पूर्णिमा के उत्सव जिस दिन से प्रारम्भ होते हैं। उस दिन से लेकर पूर्णिमा तक अस्वाध्याय रहता है। ये उत्सव कहीं-कहीं हिंसक रीति से मनाये जाते हैं, जैसे देवी-देवताओं के सम्मुख बलि देना आदि। जिस देश में जिस पूर्णिमा को जितने समय तक उत्सव चलता है उस देश में उतने समय तक स्वाध्याय करना नहीं कल्पता । यद्यपि उत्सव पूर्णिमा को पूर्ण हो जाते हैं तथापि आनन्द की अनुभूति दूसरे दिन भी रहती है अत: 'प्रतिपदा' को भी स्वाध्याय अवश्य वर्ण्य है।
• पूर्वोक्त अस्वाध्यायिकों में मात्र स्वाध्याय करना नहीं कल्पता। परन्तु प्रतिलेखन, विहार,
प्रतिक्रमण आदि क्रियायें करना कल्पता है ॥१४५७-५८ ।। चन्द्रग्रहण में जघन्य से ८ प्रहर व उत्कृष्ट से १२ प्रहर का अस्वाध्याय होता है। उदीयमान चन्द्र गृहीत हो तो
४ प्रहर रात के व ४ प्रहर आगामी दिन के इस प्रकार ८ प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
२.
प्रभातकाल में चन्द्रमा सग्रहण अस्त हो जाये तो।
४ प्रहर दिन के, ४ प्रहर आगामी रात के तथा ४ प्रहर दूसरे दिन के = १२ प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
औत्पातिक ग्रहण में यदि चन्द्र ग्रहीत ही अस्त हो जाये तो
| संदूषित रात्रि के ४ प्रहर व एक अहोरात्र पर्यंत
= १२ प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
आकाश मेघाच्छन्न होने से ज्ञात न हो कि चन्द्र | ४ प्रहर संदूषित रात के व आगामी एक कब गृहीत हुआ, पर अस्त होते समय गृहीत अहोरात्र पर्यंत = १२ प्रहर का अस्वाध्याय देखा गया हो तो
होता है।
१.
सूर्यग्रहण में जघन्य से १२ प्रहर व उत्कृष्ट से १६ प्रहर का अस्वाध्याय होता है। गृहीत सूर्य अस्त हो तो
४ प्रहर रात के, ४ प्रहर दिन के तथा ४ प्रहर आगामी रात के = १२ प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
२. | उदीयमान सूर्य राहु से गृहीत हो और अस्त
भी गृहीत ही हो तो
४ प्रहर दिन के, ४ प्रहर रात के, ४ प्रहर दूसरे दिन के तथा ४ प्रहर दूसरी रात के = १६ प्रहर का अस्वाध्याय होता है।
३. | सूर्य दिन में गृहीत हुआ हो व दिन में ही
मुक्त हो जाये तो
शेष दिवस व आगामी संपूर्ण रात्रि का अस्वाध्याय होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org