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प्रवचन-सारोद्धार
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पुक्खरिणी नंदिसेणा तहा अमोहा य वावि गोथूभा। तह य सुदंसणवावी पच्छिमअंजणचउदिसासु ॥१४८८ ॥ विजया य वेजयंती जयंति अपराजिया उ वावीओ। उत्तरदिसाए पुवुत्तवावीमाणा उ बारसवि ॥१४८९ ॥ सव्वाओ वावीओ दहिमुहसेलाण ठाणभूयाओ। अंजणगिरिपमुहं गिरितेरसग विज्जइ चउदिसिपि ॥१४९० ॥ इय बावन्नगिरिसरसिहरट्ठिय वीयरायबिम्बाणं । पूयणकए चउव्विहदेवनिकाओ समेइ सया ॥१४९१ ॥
-गाथार्थनन्दीश्वर द्वीप के जिनालय-नन्दीश्वर द्वीप का विष्कंभ प्रमाणांगुल के द्वारा एक सौ त्रेसठ करोड़ चौरासी लाख योजन है॥१४७२ ॥
इस द्वीप में अंजनरत्न की श्याम किरणों की प्रभा से जिनके द्वारा दिशायें आलोकित हैं, जो पर्वत ऐसे लगते हैं मानो हरे-भरे तमाल वृक्षों के वन-समूह से घिरे हुए हों अथवा बादलों के समूह से सुशोभित हों, ऐसे चारों दिशा में चार अंजनगिरि हैं। वे चौरासी हजार योजन ऊँचे तथा एक हजार योजन गहरे हैं। ये पर्वत मूल में दस हजार योजन तथा ऊपर एक हजार योजन विस्तृत हैं। चारों पर्वत पर मणिमय चार सिद्धायतन हैं ॥१४७३-७५ ।।
वे सिद्धायतन एक सौ योजन लंबे, बहत्तर योजन ऊँचे तथा पचास योजन चौड़े हैं। इनके चारों दिशा में चार दरवाजे हैं और ऊपर ध्वजा है। दरवाजों पर मणिमय तोरणों से युक्त प्रेक्षामण्डप बने हुए हैं। सिद्धायतनों में पाँच सौ धनुष ऊँची एक सौ आठ जिन प्रतिमायें हैं ।।१४७६-७७ ॥
सिद्धायतनों में मणिमय पीठिका, महेन्द्रध्वज, पुष्करिणी, पार्श्वभाग में कंकेलि, शतपर्ण, चंपक तथा आम्रवृक्षों के वन हैं ॥१४७८ ॥
पूर्वदिशावर्ती अंजनगिरि के चारों ओर नन्दोत्तरा, नन्दा, आनन्दा और नन्दिवर्धना नाम की चार बावड़ियाँ हैं ॥१४७९ ।।
इन बावड़ियों की लंबाई-चौड़ाई एक लाख योजन की तथा गहराई दस योजन की है। बावड़ियों की चारों दिशा में तोरण व वन हैं ॥१४८० ।।
बावड़ियों के मध्य भाग में दूध और दही के समान श्वेत वर्ण वाले दधिमुख पर्वत हैं। वे पर्वत ऐसे लगते हैं मानो बावड़ी के उछलते हुए जल की तरंगों के परस्पर टकराने से उत्पन्न हुए झागों का समूह हो ॥१४८१ ॥
ये दधिमुख पर्वत चौसठ हजार योजन ऊँचे, दस हजार योजन विस्तृत एवं एक हजार योजन गहरे हैं। ऊपर से नीचे समान विस्तार वाले होने से प्याले की तरह लगते हैं ।।१४८२ ।।
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