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द्वार २६८
(iii) विद्युत्-बिजली चमकना।
(iv) उल्का-आकाश से सरेख अथवा प्रकाशयुक्त बिजली का गिरना अथवा पुच्छल तारा का गिरना।
(v) गर्जन-मेघ गर्जना।
(vi) यूपक-शुक्लपक्ष में दूज, तीज व चौथ इन तीन दिनों में चन्द्र का प्रकाश संध्या पर पड़ने से संध्या का विभाग प्रतीत नहीं होता अत: इन तीन दिनों में प्रादोषिक कालग्रहण (वैरात्रिक कालग्रहण) तथा प्रादोषिकी सूत्रपौरुषी नहीं होती, क्योंकि कालवेला का ज्ञान नहीं हो सकता। सन्ध्या के विभाग का आवारक दूज, तीज व चौथ का चाँद यूपक कहलाता है।
(vii) यक्षादीप्त—किसी दिशा विशेष में थोड़ी-थोड़ी देर में बिजली चमकने जैसा प्रकाश दिखाई देना यक्षादीप्त कहलाता है। किसका कितने समय का अस्वाध्याय१. गांधर्वनगर = १ प्रहर का अस्वाध्याय ५. यक्षादीप्त = १ प्रहर का अस्वाध्याय २. दिग्दाह = १ प्रहर का अस्वाध्याय
६. यूपक
= १ प्रहर का अस्वाध्याय ३. विद्युत् = १ प्रहर का अस्वाध्याय ७. मेघगर्जन = २ प्रहर का अस्वाध्याय ४. उल्का = १ प्रहर का अस्वाध्याय
• पूर्वोक्त अस्वाध्यायिकों में गांधर्वनगर निश्चित रूप से देवकृत होता है शेष 'दिग्दाह' आदि
देवकृत व स्वाभाविक दोनों तरह के होते हैं। स्वाभाविक में स्वाध्याय का निषेध नहीं है किन्तु देवकृत में स्वाध्याय निषिद्ध है। परन्तु जहाँ कारण का स्पष्ट ज्ञान न हो वहाँ स्वाध्याय ।
नहीं करना चाहिये ॥१४५५-५६ ॥ पूर्वोक्त अस्वाध्यायिक के अतिरिक्त अन्य भी देवकृत अस्वाध्यायिक हैं। जैसे(i) चन्द्रग्रहण राहू के विमान से चन्द्र के विमान का उपराग (ढंकना) होना चन्द्रग्रहण है। (ii) सूर्यग्रहण-केतु के विमान से सूर्य के विमान का उपराग (ढंकना) सूर्यग्रहण है। (ii) निर्घात-आकाश में व्यंतरकृत महागर्जना निर्घात है। (iv) गुञ्जित-आकाश में व्यंतरकृत गुञ्जारव होना गुञ्जिन है।
निर्घात और गुञ्जित में एक अहोरात्रि की असज्झाय होती है। इतना विशेष है कि जिस दिन जिस समय निर्घात व गुञ्जित प्रारंभ हुआ हो उस समय से लेकर दूसरे दिन उस समय तक अस्वाध्याय रहती है। जैसे, आज दिन के १२ बजे निर्घात या गुंजित प्रारंभ हुआ हो तो कल दिन के १२ बजे तक असज्झाय समझना चाहिये।
(v) चारसंध्या-सूर्यास्त का समय, अर्धरात्रि, प्रभातकाल तथा दिन का मध्यभाग ये ४ संध्याकाल हैं। इनमें अस्वाध्याय होता है।
(vi) चारप्रतिपदा-श्रावणवदी १, कार्तिकवदी १, चैत्रवदी १ व मिगसरवदी १ इन चारों प्रतिपदा में स्वाध्याय करना नहीं कल्पता।
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