Book Title: Pravachana Saroddhar Part 2
Author(s): Hemprabhashreeji
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 413
________________ द्वार २६८ ३९६ - हड्डियों को छोड़कर मनुष्य सम्बन्धी शेष अस्वाध्यायिक सौ हाथ के भीतर पड़े हो तो एक अहोरात्रि का अस्वाध्याय होता है। यदि रुधिर आदि विवर्ण हो गया हो तो वहाँ स्वाध्याय करना कल्पता है। शेष अस्वाध्यायिकों में तीन दिन, सात दिन तथा आठ दिन अस्वाध्याय होता है ।।१४६९ ।। स्त्री-पुरुष के संभोग के समय यदि रक्त की प्रधानता हो तो स्त्री संतान पैदा होती है। स्त्री जन्मे तो आठ दिन का अस्वाध्याय होता है। शुक्र की अधिकता में पुत्र जन्म होता है। उसमें सात दिन का अस्वाध्याय होता है। स्त्रियों के तीन दिन के पश्चात् यदि रक्त गिरता है तो 'अनार्त्तव' होने से अस्वाध्यायिक नहीं माना जाता ।।१४७० ।। दाँत को देखकर दूर परठना चाहिये। शेष हड्डियाँ यदि सौ हाथ के भीतर पड़ी हों तो वहाँ बारह वर्ष तक स्वाध्याय करना नहीं कल्पता। यदि हड्डियाँ आग से जली हुई हों तो स्वाध्याय कर सकते हैं ॥१४७१ ॥ -विवेचनस्वाध्याय—सुष्ठु अध्याय: स्वाध्याय:। आगमिक विधि के अनुसार अध्ययन करना अध्याय है। शोभन अध्याय स्वाध्याय है। वही स्वाध्यायिक कहलाता है। अस्वाध्यायिक—जिन कारणों के रहते स्वाध्याय नहीं होता वे अस्वाध्यायिक हैं। जैसे, रुधिर, मांस आदि। मुख्य रूप से अस्वाध्यायिक के दो भेद हैं-आत्मसमुत्थ व परसमुत्थ । (i) आत्मसमुत्थ-स्वाध्याय कर्ता से स्वयं से सम्बन्धित रुधिर, मांस आदि। (ii) परसमुत्थ-स्वाध्यायकर्ता से भिन्न व्यक्ति से सम्बन्धित रुधिर, मांस आदि । इसके पाँच ।। भेद हैं। आत्मसमुत्थ की अपेक्षा अधिक विवेचन होने से प्रथम परसमुत्थ अस्वाध्यायिक ही बताया जाता १. संयमघाती-संयम का घात करने वाला अस्वाध्यायिक । इसके तीन भेद हैं। महिका, सचित्तरज व वर्षा । (i) महिका कार्तिक से माघमास तक धूवर पड़ती है। इससे समूचा वातावरण अप्कायमय हो जाता है। इस समय स्वाध्याय नहीं करना चाहिये। (ii) सचित्तरज-हवा से उड़ने वाली चिकनी मिट्टी. जो हलके लाल वर्ण वाली होती है। यह व्यवहार सचित्त है । इसके निरन्तर गिरने से पृथ्वी तीन दिन के पश्चात् पृथ्विकायमय बन जाती है । (iii) वर्षा-इसके तीन भेद हैं। (अ) बुद्बुद्—जिस वर्षा के पानी में बुलबुले उठते हों। ऐसी वर्षा में आठ प्रहर के पश्चात् किसी के मतानुसार तीन दिन के पश्चात् समूचा वातावरण अप्कायमय बन जाता है। (ब) बुद्बुद्वर्ज-बुद् बुद् रहित वर्षा । ऐसी वर्षा में पाँच दिन पश्चात् वातावरण अप्कायमय बन जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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