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सारस्सय-माइच्चा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य । तुसिया अव्वाबाहा अग्गिच्चा चेव रिट्ठा य ॥१४४८ ॥ पढमजुयलंमि सत्त उ सयाणि बीयंमि चउदस सहस्सा । तइए सत्त सहस्सा नव चेव सयाणि सेसेसु ॥१४४९ ॥ -गाथार्थ
कृष्णराजी - पाँचवें देवलोक के रिष्ट नामक प्रतर में आठ कृष्णराजियाँ हैं । वे समचौरस, प्रेक्षास्थान के आकार की हैं। चारों दिशा में दो-दो हैं ।। १४४१ ॥
पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा की आभ्यन्तर कृष्णराजियाँ क्रमशः दक्षिण, उत्तर, पूर्व और पश्चिम दिशा की बाह्य कृष्णराजियों को स्पर्श करती है ।। १४४२ ।।
द्वार २६७
पूर्व-पश्चिम की बाह्य कृष्णराजियां छ: कोण वाली हैं और दक्षिण-उत्तर की बाह्य कृष्णराज तिकोन हैं। पर आभ्यन्तर सभी कृष्णराजियाँ चतुष्कोण हैं ।। १४४३ ||
-विवेचन
कृष्णराजी - सजीव निर्जीव पृथ्विकाय द्वारा निर्मित दीवारों की पंक्तियाँ। पांचवें ब्रह्मलोक नामक देवलोक के तीसरे रिष्टनामक प्रतर की चारों दिशा में दो-दो कृष्णराजियाँ हैं । प्रेक्षकों के बैठने के आसन की तरह समचौरस हैं। जिसके चारों कोने समान हों, वह समचौरस कहलाती है । पूर्व और पश्चिम की दो-दो कृष्णराजियाँ दक्षिण-उत्तर की तरफ तिरछी फैली हुई हैं। उत्तर-दक्षिण की दोनों कृष्णराजियाँ पूर्व-पश्चिम की ओर तिरछी फैली हुई हैं। पूर्व दिशा की अभ्यंतर कृष्णराजी दक्षिण दिशा की बाह्य कृष्णराजी को छूती है। दक्षिण दिशा की अभ्यंतर कृष्णराजी पश्चिम दिशा की बाह्य कृष्णराजी को छूती है । पश्चिम दिशा की अभ्यंतर कृष्णराजी उत्तर दिशा की बाह्य कृष्णराजी का स्पर्श करती है तथा उत्तर दिशा की अभ्यंतर कृष्णराजी पूर्व दिशा की बाह्य कृष्णराजी को छूती है ।
पूर्व और पश्चिम की दोनों बाह्य कृष्णराजियाँ छ: कोनों वाली हैं। उत्तर-दक्षिण की दोनों बाह्य कृष्णराजियाँ तिकोन हैं और अभ्यंतर चारों ही कृष्णराजियाँ चोकोर हैं ।
पूर्वोक्त आठों कृष्णराजियों का विस्तार संख्याता योजन का तथा लंबाई व परिधि असंख्याता हजार योजन की है ।
विमान
१. उत्तर-पूर्व की आभ्यंतर कृष्णराजी के बीच में 'अर्चि' नामक विमान है । २. पूर्व की दोनों कृष्णराजी के बीच में 'अर्चिमाली' विमान है। I
३. पूर्व - दक्षिण की आभ्यंतर कृष्णराजी के बीच में 'वैरोचन' विमान है ।
४. दक्षिण की दोनों कृष्णराजी के बीच में 'प्रभंकर' विमान है।
५. दक्षिण-पश्चिम की आभ्यन्तर कृष्णराजी के बीच में 'चन्द्राभ' विमान है । ६. पश्चिम की दोनों कृष्णराजी के बीच में 'सूराभ' विमान है ।
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