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प्रवचन - सारोद्धार
१९३
जघन्य से भवनपति में व उत्कृष्ट से सौधर्म देवलोक में जाते हैं तथा श्रावक जघन्य से भवनपति में व उत्कृष्ट से ज्योतिषी में जाते हैं । संख्याता वर्ष की आयुष्य वाले गर्भज पर्याप्ता मनुष्य चारों गति में जाते हैं। गर्भज अपर्याप्ता और संमूर्च्छिम मनुष्य मरकर अयुगलिक नर- तिर्यंच में जाते हैं ।
पूर्वोक्त गति अपने - अपने शास्त्र में विहित आचार का पालन करने वाले जीवों की ही समझना । आचारहीन जीवों की तो अन्य गतियाँ भी हो सकती है ॥ ११२० ॥
१९१ द्वार :
आगति
नेरइयजुयलवज्जा एगिंदिसु इंति अवरगइजीवा । विगलत्तेणं पुण ते हवंति अनिरय अमरजुयला ॥११२१ ॥ हुति हु अमणतिरिच्छा नरतिरिया जुयलधम्मिए मोत्तुं । गब्भचउप्पयभावं पावंति अजुयलचउगइया ॥११२२ ॥ नेरइया अमरावि य तेरिच्छा माणवा य जायंति । मत्तेणं वज्जित्तु जुयलधम्मियनरतिरिच्छा ॥ ११२३ ॥ -गाथार्थ
एकेन्द्रियादि की आगति - नरक के जीव और युगलिकों को छोड़कर शेष गति के जीव एकेन्द्रिय में जाते हैं । नरक के जीव देव एवं युगलिकों को छोड़कर शेष जीव विकलेन्द्रिय में जाते हैं । ११२१ ।।
युगलिक मनुष्य-तिर्यंचों को छोड़कर शेष मनुष्य- तिर्यंच असंज्ञी तिर्यंच में जाते हैं । युगलिकों को छोड़कर चारों गति के जीव गर्भज चतुष्पद में उत्पन्न होते हैं ।। ११२२ ॥
नारक, देव तथा अयुगलिक मनुष्य- तिर्यंच मरकर गर्भज मनुष्य में उत्पन्न होते हैं ।। ११२३ ॥ -विवेचन
१. विकलेन्द्रिय में पाँच स्थावर, तीन विकलेन्द्रिय, संख्याता वर्ष की आयु वाले तिर्यंच व मनुष्य उत्पन्न होते हैं ।
२. असंज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यंच व मनुष्य में संख्याता वर्ष की आयु वाले मनुष्य व तिर्यंच उत्पन्न
होते हैं।
३. गर्भज चतुष्पद में युगलिक नर- तिर्यंच को छोड़कर चारों ही गति के शेष जीव उत्पन्न होते हैं, देवता सहस्रार तक के ही लेना, कारण इससे ऊपर के देव केवल मनुष्य में ही उत्पन्न होते है 1 ४. गर्भज तिर्यंच पञ्चेन्द्रिय की आगति भी पूर्ववत् समझना । 'जीवाभिगम' आदि आगमों में पूर्वोक्त चारों गति के जीवों का उत्पाद जलचरादि में भी बताया है ।
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