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द्वार १९४
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भाषा बोलते हैं। तरह-तरह के आभूषण, प्रहरण, वाहन आदि की विकुर्वणा करते हैं । अत्यन्त क्रीड़ासक्त रहते हैं।
जघन्य स्थिति—पूर्वोक्त सभी की जघन्य स्थिति १०००० वर्ष की है। व्यन्तर, वाण-व्यन्तरव्यन्तर
रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर १००० योजन विस्तृत रत्नकांड में से ऊपर और नीचे १००-१०० योजन छोड़कर ८०० योजन के मध्य रुचक पर्वत के उत्तर और दक्षिण में व्यन्तर देवों के नगर
हैं। दोनों दिशा के इन्द्र अलग-अलग होने से १६ इन्द्र हैं। वाणव्यन्तर
रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपरवर्ती १०० योजन में से ऊपर-नीचे १०-१० योजन छोड़कर बीच के ८० योजन प्रमाण रत्नकांड के उत्तर, दक्षिण भाग में, वाणव्यन्तर देवों के नगर हैं। इनके भी इन्द्र
अलग-अलग होने से = १६ हैं। व्यन्तर देवों के भेद
व्यन्तर दक्षिणेन्द्र उ० स्थिति उत्तरेन्द्र उ० स्थिति ज० स्थिति (i) भूत महाकाल किंपुरुष
इन सबकी पिशाच काल
किन्नर
जघन्य (iii) यक्ष सुरूप
सत्पुरुष
स्थिति (iv) राक्षस प्रतिरूपक
महापुरुष
दस किन्नर पूर्णभद्र
अतिकाय
हजार (vi) किंपुरुष मणिभद्र
महाकाय
वर्ष की (vii) महोरग
गीतरति (viii) गन्धर्व महाभीम
गीतयश वाणव्यन्तर दक्षिणेन्द्र उत्कृष्ट उत्तरेन्द्र उत्कृष्ट जघन्य स्थिति
स्थिति स्थिति अप्रज्ञप्तिका संनिहित
सामान ए इन । (ii) पंचप्रज्ञप्तिका धाता
विधाता
सबकी (iii) ऋषिवादी ऋषि
ऋषिपाल
जघन्य (iv) भूतवादी ईश्वर
महेश्वर
स्थिति क्रन्दित सुवत्स
विशाल प महाक्रंदित हास्य
हास्यरति
हजार
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