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प्रवचन-सारोद्धार
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९. मर्मस्थान
= १०७ हैं। १०. स्नायु
= अस्थिबंधन–हड्डियों को लपेटने वाली ९०० नाड़ियाँ हैं। ११. धमनी
= ९ बड़ी नसें, जो रस को वहन करने वाली हैं। १२. नसें = पुरुष के शरीर में नाभि से उत्पन्न होने वाली ७०० नाड़ियाँ हैं। १६० नाड़ियाँ नाभि से सिर तक फैली हुई हैं। ये नाड़ियाँ रस को विकीर्ण करने वाली होने से रसहरणी कहलाती . हैं। चक्षु, श्रोत्र, नाक, जीभ आदि इन्द्रियों के सामर्थ्य का आधार ये नाड़ियाँ हैं। १६० नाड़ियाँ नाभि से पाँव तक फैली हुई हैं। इन नाड़ियों के अनुग्रह, उपघात से जंघा, शिर, आँख-नाक-जीभ इत्यादि के अनुग्रह, उपघात जुड़े हुए हैं। अन्य १६० नाड़ियाँ नाभि से गुदा तक जाती हैं, जो वायु, मूत्र और पुरिस का निष्कासन करती हैं। इनमें विकार होने से अर्श, पाँडु, टट्टी-पेशाब रुकना आदि रोग उत्पन्न होते हैं। १६० तिरछी फैली हुई नाड़ियाँ हैं, जिनसे भुजाबल मिलता है। इनमें उपघात होने से पसली, पेट आदि में वेदना होती है। अन्य २५ शिरायें कफ, २५ पित्त एवं १० शुक्र आदि सात धातुओं को वहन करने वाली हैं। इस प्रकार ७०० नाड़ियाँ पुरुष के शरीर में होती हैं। किसके कितनी नाड़ियाँ होती हैं? पुरुष के = ७०० शिरा।
ये शिरायें स्त्री के = ६७० शिरा।
नाभि से उत्पन्न नपुंसक के = ६८० शिरा।
होती हैं। रोम
= ९९ लाख (श्मश्रु = दाढ़ी-मूंछ और शिर के केशों को
छोड़कर) श्मश्रु और शिर के केशों को मिलाने से साढ़े
तीन करोड़ रोमराजी होती है। . शरीर में सर्वदा मूत्र, = प्रत्येक चार-चार सेर परिमाण रहते हैं। शोणित शरीर में सर्वदा वसा . = दो सेर परिमाण मस्तक (स्नेह)
= एक सेर परिमाण = एक सेर परिमाण (अन्य मतानुसार मस्तुलुंक का अर्थ है
मेद, पिप्पिस आदि।) मल का परिमाण __= छ: सेर पित्त-श्लेष्म का परिमाण = प्रत्येक एक-एक पाव
शुक्र का परिमाण = आधा पाव परिमाण की इकाई
दो असइओ पसई, दो पसइओ सेइया। चत्तारि सेझ्याउ कुलओ चत्तारि कुड़वा पत्थो। चत्तारि पत्या अढ़ियं, चत्तारि आढया दोणो ।
मेद
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