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प्रवचन-सारोद्धार
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सामाग-१
डाओ वत्थुलराईण भज्जिया हिंगुजीरयाइजुया। सा य रसालू जा मज्जियत्ति तल्लक्खणं चेव ॥१४१५ ॥ दो घयपला महु पलं दहियस्सऽद्धाढयं मिरिय वीसा । दस खंडगुलपलाई एस रसालू निवइजोगो ॥१४१६ ॥ पाणं सुराइयं पाणियं जलं पाणगं पुणो एत्थ । दक्खावाणियपमुहं सागो सो तक्कसिद्धं जं ॥१४१७ ॥
-विवेचन अट्ठारह प्रकार का भक्ष्यभोजन१. मूंग, तुवर, चना आदि की दाल । १२. कूर आदि ओदन ३. जौ से बनी हुई खीर
दूध, दही, घी, छाछ आदि ५-७ मत्स्य, हरिण, लावा आदि का मांस (जलचर-स्थलचर-खेचर का मांस) मांस भक्षियों
की अपेक्षा मांस भोजन है इस दृष्टि से इसका यहाँ उल्लेख किया गया है। अहिंसा की दृष्टि से तो मांस सर्वथा अभोज्य है। जीरा, हल्दी आदि डालकर संस्कारित किया हुआ मूंग का पानी ।
चासनी या खाँड चढ़ाये हुए खाजे आदि । १०. गुड़पापड़ी, गुड़धानी आदि । ११. अश्वगंधा आदि मूल तथा आम आदि फल । १२. जीरा आदि के पत्तों से बना हुआ भोज्य विशेष (हरीतक) १३. हींग, जीरा आदि डालकर संस्कारित वथुए आदि की भाजी (डाक) १४. मज्जिका - राजयोग्य या श्रीमन्तों के खाने योग्य पाक विशेष दो पल घी, एक पल
मधु, - आढ़क दही, २० मिर्ची, १० पल चीनी या गुड़ मिलाकर बनाया
हुआ पाक विशेष जिसे रसाला कहते हैं। १५. पान - सभी प्रकार का मद्य। १६. पानी - ठण्डा, सुस्वादु जल । १७. पानक दाख, खजूर आदि का पानी । १८. शाक - दही, छाछ आदि डालकर बनायी हुई बड़े आदि की सब्जी ॥१४११-१७ ॥
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