________________
प्रवचन-सारोद्धार
३८५
(iv)
इन्द्रियों की अपेक्षा अल्प-बहुत्व(i) पंचेन्द्रिय
सबसे अल्प हैं, क्योंकि संख्याता कोड़ाकोड़ी योजन प्रमाण विष्कंभ सूची से परिमित प्रतर के असंख्यातवें भाग में स्थित असंख्याती श्रेणियों के जितने आकाश-प्रदेश हैं, उतने पंचेन्द्रिय
जीव हैं। (ii) चतुरिन्द्रिय
विशेषाधिक । पूर्वोक्त विष्कंभ-सूची के संख्याता की अपेक्षा
इनका संख्याता अधिक है। (संख्याता के संख्याता भेद है) (ii) त्रीन्द्रिय
विशेषाधिक । पूर्वोक्त विष्कंभ सूची के संख्याता की अपेक्षा
इनका संख्याता अधिकतम हैं। द्वीन्द्रिय
विशेषाधिक । पूर्वोक्त विष्कंभ सूची के संख्याता की अपेक्षा
इनका संख्याता अधिकतम हैं। .(v) अनिन्द्रिय
अनन्तगुणा हैं। सिद्ध अनन्त हैं। (vi) एकेन्द्रिय
सिद्धों की अपेक्षा अनन्तगुणा हैं, क्योंकि वनस्पति के जीव सिद्धों
की अपेक्षा अनन्त हैं। (vii) सेन्द्रिय
पूर्व की अपेक्षा विशेषाधिक (सेन्द्रिय में एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय
तक के सभी जीव आ जाते हैं)। जीव और पुद्गल का अल्प-बहुत्व
जीव सबसे अल्प है। कारण निम्न हैं
जीव की अपेक्षा पुद्गल अनन्तगुणा है, क्योंकि पुद्गल द्रव्य के परमाणु से लेकर द्विप्रदेशी, त्रिप्रदेशी यावत् अनन्तप्रदेशी, अनन्तानन्त स्कन्ध होते हैं। यद्यपि पुद्गलद्रव्य अनन्त हैं, तथापि सामान्यत: उनके तीन भेद हैं।
(i) प्रयोग-परिणत-जो पुद्गल जीव के प्रयत्न से विशेष परिणाम प्राप्त करता है। (ii) मिश्र-परिणत—जो पुद्गल-द्रव्य अपने सहज-स्वभाव एवं जीव के प्रयत्न द्वारा विशेष
परिणाम प्राप्त करता है। (iii) विस्रसा परिणत-जो पुद्गल-द्रव्य अपने सहज स्वभाव से ही विशेष परिणाम प्राप्त
करता है। जीवों की अपेक्षा प्रयोग-परिणत पुद्गल-द्रव्य अनन्तगुणा है, क्योंकि प्रत्येक संसारी जीव अपने-अपने प्रयत्न के द्वारा ज्ञानावरणीय आदि कर्म के रूप में परिणत बने अनंत-अनंत पुद्गल स्कंधों से आवृत रहते हैं।
प्रयोग-परिणत पद्गल-द्रव्य की अपेक्षा मिश्र-परिणत पद्गल द्रव्य अनन्तगुण हैं। मिश्र-परिणत पुद्गल-द्रव्य की अपेक्षा विस्रसा-परिणत पुद्गल द्रव्य अनन्तगुण हैं । इससे यह सिद्ध हुआ कि जीव सब से अल्प हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org