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द्वार २५७
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इह वंजणं मसाई लंछणपमुहं तु लक्खणं भणियं । सुहअसुह-सूयगाइं अंगाईयाइं अट्ठावि ॥१४०९ ॥
-गाथार्थअष्टांग निमित्त-१. अंग २. स्वप्न ३. स्वर ४. उत्पात ५. आकाश ६. भूमि ७. व्यंजन और ८. लक्षण-ये आठ प्रकार के निमित्त हैं ।।१४०५ ।।
___ अंग-स्फुरणा से जो शुभ-अशुभ फलादेश किया जाता है वह अंग निमित्त है। अच्छे-बुरे स्वप्नों के द्वारा जो शुभाशुभ फलादेश किया जाता है वह स्वप्न निमित्त है ।।१४०६ ।।
इष्ट-अनिष्ट स्वर से शुभाशुभ बताना स्वर निमित्त है। रुधिर आदि की वर्षा होना उत्पात निमित्त है ।।१४०७॥
ग्रहवेध, भूतादि का अट्टहास्य आदि अन्तरिक्ष निमित्त है। भूकंप आदि के द्वारा शुभाशुभ जानना भूमि निमित्त है ॥१४०८ ॥
तिल, मसे आदि व्यंजन हैं। लसणिया आदि लक्षण हैं। ये आठों निमित्त शुभ-अशुभ के सूचक हैं ।।१४०९॥
-विवेचन निमित्त-अतीत-अनागत व वर्तमान के अतीन्द्रिय शुभाशुभ भावों के ज्ञान का कारणभूत वस्तुसमूह निमित्त कहलाता है। इसके ८ भेद हैं। अंग, स्वप्न, स्वर, उत्पात, अन्तरिक्ष, भौम, व्यंजन, और लक्षण। आठ अंग होने से 'अष्टांगनिमित्त' कहलाता है ॥१४०५ ॥
(१) अंग–अंग-उपांग की स्फुरणा के आधार से त्रैकालिक शुभाशुभ बताना वह 'अंगनिमित्त' कहलाता है। पुरुष का दायाँ व स्त्री का बायाँ अंग फरकना फलदायी होता है। इसके आधार पर कहना कि–'शिर फरकने से पृथ्वीलाभ, ललाट फरकने से स्थानलाभ होता है' इत्यादि ।
(२) स्वप्न-सुस्वप व दुःस्वप्न के आधार से शुभाशुभ बताना 'स्वप्ननिमित्त' है। जैसे—स्वप्न में 'देवपूजन, पुत्र, बांधव, उत्सव, गुरु, छत्र, कमल आदि देखना, प्राकार, हाथी, बादल, वृक्ष, पर्वत और महल पर चढ़ना, समुद्र में तैरना, सुरा, अमृत व दही का पान करना, चन्द्र-सूर्य का ग्रास स्वप्न में देखना शुभ है' ॥१४०६ ॥
(३) स्वर-सप्तविध स्वर को सुनकर अथवा पक्षियों के स्वर को सुनकर शुभाशुभ फल बताना 'स्वर निमित्त' है। जैसे—'षड्ज स्वर से आजीविका की प्राप्ति होती है। किया हुआ काम निष्फल नहीं जाता। गाय, मित्र, पुत्रादि परिवार की प्राप्ति होती है तथा ऐसा व्यक्ति स्त्रीवल्लभ होता है।' इत्यादि ।
(४) उत्पात-रक्त, हड्डियाँ आदि की सहज वर्षा होना ‘उत्पात' है। उसके आधार से शुभाशुभ कथन करना ‘उत्पात निमित्त' है। जैसे चर्बी, रक्त, हड्डियाँ, धान्य, अंगारे व मेद की जहाँ वर्षा होती है वहाँ चारों प्रकार का भय छा जाता है ॥१४०७ ॥
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