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द्वार २३६
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(अ)
(स) स्थूल हिंसा आदि स्वयं न करना, न कराना वचन से व काया से। इस प्रकार व्रत ग्रहण करने वाला आत्मा मात्र मन से ही हिंसादि करने, कराने का दर्विचार करता है। अनुमति की तीनों विकल्पों में छूट है। (iii) द्विविध-एकविध - दो करण एक योग से पच्चक्खाण करने वाले श्रावक । इसके
भी तीन भेद हैं- स्थूलहिंसादि आदि स्वयं न करना, न कराना मन से। - स्थूलहिंसादि स्वयं न करना, न कराना वचन से।
- स्थूलहिंसादि स्वयं न करना, न कराना काया से। (iv) एकविध-त्रिविध - एक करण, तीन योग से पच्चक्खाण करने वाले श्रावक । इसके
दो भेद हैं(अ)
- स्थूलहिंसादि न करना, मन से, वचन से और काया से।
- स्थूलहिंसादि न कराना, मन से, वचन से और काया से। (v) एकविध-द्विविध - इसके उत्तरभेद छ: हैं। एक करण और दो योग से पच्चक्खाण
करने वाले श्रावक। - स्थूलहिंसादि न करना, मन-वचन से। - स्थूलहिंसादि न करना, मन-काया से । - स्थूलहिंसादि न करना, वचन-काया से। - स्थूलहिंसादि न कराना, मन-वचन से। -- स्थूलहिंसादि न कराना, मन-काया से ।
- स्थूलहिंसादि न कराना, वचन-काया से। (vi) एकविध-एकविध - एक करण एक योग से पच्चक्खाण करने वाले श्रावक। इसके
भी उत्तरभेद छ: हैं। - स्थूलहिंसादि न करना, मन से । -- स्थूलहिंसादि न करना, वचन से। - स्थूलहिंसादि न करना, काया से। - स्थूलहिंसादि न कराना, मन से। - स्थूलहिंसादि न कराना, वचन से ।
- स्थूलहिंसादि न कराना, काया से। इस प्रकार श्रावक के पच्चक्खाण के मूलभंग छ: और उत्तरभंग इक्कीस हैं। इन्हें कोष्ठक द्वारा इस प्रकार समझा जा सकता है।
(द)
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