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१७. विनीत — गुरुजनों का गौरव, औचित्य रखने वाला । विनीत आत्मा को अवश्य संपदा प्राप्त
होती है ।
द्वार २३९-२४०-२४१-२४२
१८. वृद्धानुग - वृद्ध पुरुषों का अनुसरण करने वाला । गुणप्राप्ति की इच्छा से परिणत बुद्धि वाले वृद्ध पुरुषों की सेवा करने वाला । ऐसा व्यक्ति कभी विपद् का भागी नहीं बनता ।
१९. कृतज्ञ - किसी के द्वारा किये हुए अल्प भी उपकार को कभी भी न भूलने वाला । ऐसा आत्मा सर्वत्र प्रशंसा पाता है। जबकि कृतघ्न आत्मा निंदा - पात्र बनता है ।
२०. परिहितार्थकारी — बिना कहे दूसरों का हित करने वाला । सदाक्षिण्य में परहित की प्रवृत्ति होती है, किन्तु दूसरों के चाहने पर। जबकि 'परहितार्थकारी' में करने वाला स्वतः परहित में प्रवृत्त होता है । (प्रकृत्यैव परहितकरणे नितरां निरतो भवति) ऐसा व्यक्ति नि:स्पृह होने से दूसरों को भी धर्म में जोड़ सकता है।
२१. लब्ध लक्ष --- लब्ध = प्राप्त कर लिया है, लक्ष = करने योग्य अनुष्ठानादि अर्थात् पूर्वभव के ऐसे सुदृढ़ संस्कार लेकर आने वाला आत्मा कि धर्म क्रियायें जिसके जीवन में सहज प्राप्त हो जायें । ऐसे व्यक्ति को धर्माचरण की शिक्षा सुगमता से दी जा सकती है 1 पूर्वोक्त २१ गुणों से युक्त श्रावक होता है ॥ १३५६-५८ ।।
२४० द्वार :
गर्भ-स्थिति तिर्यंच- स्त्री की
२४१२४२ द्वार :
तिर्यंच स्त्री की उत्कृष्ट गर्भ-स्थिति
उत्कृष्ट से आठ वर्ष तक गर्भ धारण करती है, तत्पश्चात् अवश्य प्रसव होता है या गर्भस्थ जीव मर जाता है ॥१३५९ ॥
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उक्किट्ठा गठिई तिरियाणं होइ अट्ठ वरिसाई । माणुस्सी कि इत्तो गब्भट्ठि वुच्छं ॥१३५९ ॥ -विवेचन
गर्भ-स्थिति मानवी कीगर्भ की काय-स्थिति
of मणुस्सीणुक्किट्ठा होइ वरिस बारसगं ।
गब्स य कायठिई नराण चउवीस वरिसाई ॥१३६० ॥
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