SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४६ १७. विनीत — गुरुजनों का गौरव, औचित्य रखने वाला । विनीत आत्मा को अवश्य संपदा प्राप्त होती है । द्वार २३९-२४०-२४१-२४२ १८. वृद्धानुग - वृद्ध पुरुषों का अनुसरण करने वाला । गुणप्राप्ति की इच्छा से परिणत बुद्धि वाले वृद्ध पुरुषों की सेवा करने वाला । ऐसा व्यक्ति कभी विपद् का भागी नहीं बनता । १९. कृतज्ञ - किसी के द्वारा किये हुए अल्प भी उपकार को कभी भी न भूलने वाला । ऐसा आत्मा सर्वत्र प्रशंसा पाता है। जबकि कृतघ्न आत्मा निंदा - पात्र बनता है । २०. परिहितार्थकारी — बिना कहे दूसरों का हित करने वाला । सदाक्षिण्य में परहित की प्रवृत्ति होती है, किन्तु दूसरों के चाहने पर। जबकि 'परहितार्थकारी' में करने वाला स्वतः परहित में प्रवृत्त होता है । (प्रकृत्यैव परहितकरणे नितरां निरतो भवति) ऐसा व्यक्ति नि:स्पृह होने से दूसरों को भी धर्म में जोड़ सकता है। २१. लब्ध लक्ष --- लब्ध = प्राप्त कर लिया है, लक्ष = करने योग्य अनुष्ठानादि अर्थात् पूर्वभव के ऐसे सुदृढ़ संस्कार लेकर आने वाला आत्मा कि धर्म क्रियायें जिसके जीवन में सहज प्राप्त हो जायें । ऐसे व्यक्ति को धर्माचरण की शिक्षा सुगमता से दी जा सकती है 1 पूर्वोक्त २१ गुणों से युक्त श्रावक होता है ॥ १३५६-५८ ।। २४० द्वार : गर्भ-स्थिति तिर्यंच- स्त्री की २४१२४२ द्वार : तिर्यंच स्त्री की उत्कृष्ट गर्भ-स्थिति उत्कृष्ट से आठ वर्ष तक गर्भ धारण करती है, तत्पश्चात् अवश्य प्रसव होता है या गर्भस्थ जीव मर जाता है ॥१३५९ ॥ Jain Education International उक्किट्ठा गठिई तिरियाणं होइ अट्ठ वरिसाई । माणुस्सी कि इत्तो गब्भट्ठि वुच्छं ॥१३५९ ॥ -विवेचन गर्भ-स्थिति मानवी कीगर्भ की काय-स्थिति of मणुस्सीणुक्किट्ठा होइ वरिस बारसगं । गब्स य कायठिई नराण चउवीस वरिसाई ॥१३६० ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy