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________________ प्रवचन-सारोद्धार ३४७ -गाथार्थमानवी की उत्कृष्ट गर्भ-स्थिति एवं गर्भस्थ मनुष्य की काय-स्थिति-मनुष्य स्त्री की उत्कृष्ट गर्भ स्थिति बारह वर्ष की है तथा गर्भस्थ मनुष्य की काय स्थिति चौबीस वर्ष की है ॥१३६० ॥ -विवेचन उत्कृष्टत: १२ वर्ष महापाप के उदय से वात-पित्त आदि दोषों के कारण तथा देवादि द्वारा गर्भ स्तंभन करने से उत्कृष्टत: जीव की गर्भ स्थिति १२ वर्ष की होती है। उत्कृष्टत: २४ वर्ष कोई महापापी जीव १२ वर्ष के बाद गर्भ में ही मरकर तथाविध कर्मवश पुन: उसी कलेवर में उत्पन्न हो जाता है और उसी शरीर में पुन: १२ वर्ष तक रहता है ॥१३६० ॥ २४३ द्वार : गर्भस्थ का आहार पढमे समये जीवा उप्पन्ना गब्भवास- मज्झंमि । ओयं आहारती सव्वप्पणयाइ पूयव्व ॥१३६१ ॥ ओयाहारा जीवा सव्वे अपज्जत्तया मुणेयव्वा । पज्जत्ता उण लोमे पक्खेवे हंति भइयव्वा ॥१३६२ ॥ -गाथार्थगर्भस्थ जीव का आहार--गर्भ में उत्पन्न होते ही प्रथम समय में जीव मालपुए की तरह अपने संपूर्ण आत्मप्रदेशों के द्वारा ओजाहार करता है। सभी अपर्याप्ताजीव ओजाहारी होते हैं। सभी पर्याप्ता जीव लोमाहारी और कवलाहारी होते हैं ।।१३६१-६२ ।। -विवेचन उत्पत्ति के प्रथम समय में जीव ओज आहार करता है। जिस प्रकार तेल या घी से भरी कड़ाई में मालपूआ डालते ही (प्रथम समय में ही) वह घी-तेल को पी लेता है, वैसे उत्पत्ति के प्रथम समय में ही जीव अपने सभी आत्म-प्रदेशों के द्वारा पिता के शुक्र और माता के शोणित का मिश्रित आहार करता ओज = पिता के शुक्र और माता के शोणित का मिश्रण ओज कहलाता है। तत्पश्चात् जीव किस अवस्था में कौनसा आहार करता है ? इसकी सम्पूर्ण चर्चा २०५वे द्वार में द्रष्टव्य है ॥१३६१-६२ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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