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________________ द्वार २३६ ३२८ 586 0 305:08. 11455551050000७४.१००००0-206658314.....५५::: (अ) (स) स्थूल हिंसा आदि स्वयं न करना, न कराना वचन से व काया से। इस प्रकार व्रत ग्रहण करने वाला आत्मा मात्र मन से ही हिंसादि करने, कराने का दर्विचार करता है। अनुमति की तीनों विकल्पों में छूट है। (iii) द्विविध-एकविध - दो करण एक योग से पच्चक्खाण करने वाले श्रावक । इसके भी तीन भेद हैं- स्थूलहिंसादि आदि स्वयं न करना, न कराना मन से। - स्थूलहिंसादि स्वयं न करना, न कराना वचन से। - स्थूलहिंसादि स्वयं न करना, न कराना काया से। (iv) एकविध-त्रिविध - एक करण, तीन योग से पच्चक्खाण करने वाले श्रावक । इसके दो भेद हैं(अ) - स्थूलहिंसादि न करना, मन से, वचन से और काया से। - स्थूलहिंसादि न कराना, मन से, वचन से और काया से। (v) एकविध-द्विविध - इसके उत्तरभेद छ: हैं। एक करण और दो योग से पच्चक्खाण करने वाले श्रावक। - स्थूलहिंसादि न करना, मन-वचन से। - स्थूलहिंसादि न करना, मन-काया से । - स्थूलहिंसादि न करना, वचन-काया से। - स्थूलहिंसादि न कराना, मन-वचन से। -- स्थूलहिंसादि न कराना, मन-काया से । - स्थूलहिंसादि न कराना, वचन-काया से। (vi) एकविध-एकविध - एक करण एक योग से पच्चक्खाण करने वाले श्रावक। इसके भी उत्तरभेद छ: हैं। - स्थूलहिंसादि न करना, मन से । -- स्थूलहिंसादि न करना, वचन से। - स्थूलहिंसादि न करना, काया से। - स्थूलहिंसादि न कराना, मन से। - स्थूलहिंसादि न कराना, वचन से । - स्थूलहिंसादि न कराना, काया से। इस प्रकार श्रावक के पच्चक्खाण के मूलभंग छ: और उत्तरभंग इक्कीस हैं। इन्हें कोष्ठक द्वारा इस प्रकार समझा जा सकता है। (द) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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