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प्रवचन - सारोद्धार
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एवं जइच्छाईहिवि परहिं भंगहुगं दुगं पत्तं । मिलियावि ते दुवालस संपत्ता जीवतत्तेणं ॥ ११९७ ॥ एवमजीवाईहिवि पत्ता जाया तओ य चुलसीई । भेया अकिरियवाईण हुंति इमे सव्वसंखाए ॥११९८ ॥ संत-मसंतं संतासंत- मवत्तव्व सयअवत्तव्वं । असय अवत्तव्वं सयसयवत्तव्वं च सत्त पया ॥११९९ ॥ जीवाइनवपयाणं अहोकमेणं इमाई ठविऊणं ।
जह कीरइ अहिलावो तह साहिज्जइ निसामेह ॥ १२०० ॥ संतो जीवो को जाणइ ? अहवा किं व तेण नाएणं ? | सेसपएहिवि भंगा इय जाया सत्त जीवस्स ॥ १२०१ ॥ एवमजीवाईणऽवि पत्तेयं सत्त मिलिय तेसट्ठी | तह अन्नेऽवि हु भंगा चत्तारि इमे उ इह हुंति ॥ १२०२ ॥ संती भावुप्पत्ती को जाणइ किंच तीए नायाए ? । एवमसंती भावुष्पत्ती सदसत्तिया चेव ॥ १२०३ ॥ तह अव्वत्तव्वावि हु भावुप्पत्ती इमेहिं मिलिएहिं । भंगाण सत्तसट्ठी जाया अन्नाणियाण इमा ॥ १२०४ ॥ सुर निवइ इ न्नाई थविरा वम माइ पिइसु एएसिं । मण वयण काय दाणेहिं चउव्विहो कीरए विणओ ॥ १२०५ ॥ अवि चक्कगुणिया बत्तीस हवंति वेणइयभेया ।
सव्वेहिं पिंडिएहिं तिन्नि सया हुंति तेसट्ठा ॥ १२०६ ॥
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-गाथार्थ
तीन सौ त्रेसठ पाखंडी - क्रियावादी के १८०, अक्रियावादी के ८४, अज्ञानवादी के ६७ एवं विनयवादी के ३२ भेद हैं ।। ११८८ ।।
क्रियावादी के भेद - जीवादि नव पदों के नीचे स्वतः एवं परत: ये दो शब्द लिखना । उन दोनों के नीचे नित्य और अनित्य ये दो पद लिखना । फिर नित्य-अनित्य पदों के नीचे काल; स्वभाव, नियति, ईश्वर और आत्मा इन पाँच पदों की स्थापना क्रमशः करना चाहिये ।। ११८९-९० ॥
'जीव स्वतः नित्य काल से है' यह प्रथम भंग है। दूसरा भंग है 'जीव स्वतः अनित्य काल से है।' इस प्रकार परत: के साथ भी दो भंग समझना चाहिये । इस प्रकार काल के साथ चार भंग हुए। काल की तरह स्वभाव आदि चार के साथ भी चार-चार भेद होने से जीव पद के कुल बीस भेद हुए । इस प्रकार अजीवादि आठ पदों के भी बीस भेद होने से क्रियावादी के कुल १८० भेद हुए ।।११९१-९३ ॥
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