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प्रवचन-सारोद्धार
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का रसोदय व प्रदेशोदय दोनों का अभाव होने से यह सर्वोपशम कहलाता है। सर्वोपशम मोहनीय कर्म का ही होता है। कषायोदय के अभाव में होने वाली जीव की परमशान्त अवस्था । इसके दो भेद हैं
(अ) उपशम सम्यक्त्व-दर्शन सप्तक के उपशम से जन्य परिणाम विशेष। (ब) उपशम चारित्र—चारित्र मोहनीय के उपशम से जन्य परिणाम विशेष । (ii) क्षायिक कर्मों के सर्वथा क्षय से जन्य परिणाम विशेष । इसके नौ भेद हैं१. केवल-ज्ञान
अपने-अपने आवरणीय कर्मों के २. केवल दर्शन
क्षय से जन्य। ३. क्षायिक सम्यक्त्व
दर्शन-सप्तक के क्षय से जन्य। ४. क्षायिक-चारित्र
चारित्रमोहनीय के क्षय से जन्य । ५. दान-लब्धि
पाँच ६. भोग-लब्धि
प्रकार के ७. उपभोग-लब्धि
अन्तराय ८. लाभ-लब्धि
के क्षय ९. वीर्य-लब्धि
से जन्य (iii) क्षायोपशमिक–घाती कर्म के उदीर्ण अंश के क्षय तथा अनुदीर्ण अंश के उपशम से जन्य मतिज्ञानादि लब्धिरूप आत्म-परिणाम विशेष । इसके अठारह भेद हैं। १-४ मति, श्रुत, अवधि,
अपने आवारक कर्म के मन:पर्यवज्ञान
क्षयोपशम ५-७ तीन अज्ञान ८-१० तीन दर्शन
जन्य। ११ सम्यक्त्व (क्षायोपशमिक)
दर्शन-सप्तक के क्षयोपशम से जन्य । १२ देशविरति
अप्रत्याख्यानावरण कषाय के
क्षयोपशम से जन्य। १३ सर्वविरति
चारित्र मोहनीय के क्षयोपशम से
जन्य।
१४-१८ दानादि पाँच लब्धि
अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से जन्य। (iv) औदयिक-यथासमय उदयप्राप्त कर्मों के स्वरूप का अनुभव करना अथवा कर्मों के उदय से जन्य परिणाम-विशेष जैसे, नरकादि पर्याय क्रोधादि कषाय जन्य परिणाम । इसके इक्कीस भेद हैं१. अज्ञान
मतिज्ञानावरण और मिथ्यात्व मोह के उदय से जन्य । २. असिद्धत्व
आठ कर्मों के उदय से जन्य । ३. असंयम
अप्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से जन्य।
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