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________________ प्रवचन-सारोद्धार २८५ का रसोदय व प्रदेशोदय दोनों का अभाव होने से यह सर्वोपशम कहलाता है। सर्वोपशम मोहनीय कर्म का ही होता है। कषायोदय के अभाव में होने वाली जीव की परमशान्त अवस्था । इसके दो भेद हैं (अ) उपशम सम्यक्त्व-दर्शन सप्तक के उपशम से जन्य परिणाम विशेष। (ब) उपशम चारित्र—चारित्र मोहनीय के उपशम से जन्य परिणाम विशेष । (ii) क्षायिक कर्मों के सर्वथा क्षय से जन्य परिणाम विशेष । इसके नौ भेद हैं१. केवल-ज्ञान अपने-अपने आवरणीय कर्मों के २. केवल दर्शन क्षय से जन्य। ३. क्षायिक सम्यक्त्व दर्शन-सप्तक के क्षय से जन्य। ४. क्षायिक-चारित्र चारित्रमोहनीय के क्षय से जन्य । ५. दान-लब्धि पाँच ६. भोग-लब्धि प्रकार के ७. उपभोग-लब्धि अन्तराय ८. लाभ-लब्धि के क्षय ९. वीर्य-लब्धि से जन्य (iii) क्षायोपशमिक–घाती कर्म के उदीर्ण अंश के क्षय तथा अनुदीर्ण अंश के उपशम से जन्य मतिज्ञानादि लब्धिरूप आत्म-परिणाम विशेष । इसके अठारह भेद हैं। १-४ मति, श्रुत, अवधि, अपने आवारक कर्म के मन:पर्यवज्ञान क्षयोपशम ५-७ तीन अज्ञान ८-१० तीन दर्शन जन्य। ११ सम्यक्त्व (क्षायोपशमिक) दर्शन-सप्तक के क्षयोपशम से जन्य । १२ देशविरति अप्रत्याख्यानावरण कषाय के क्षयोपशम से जन्य। १३ सर्वविरति चारित्र मोहनीय के क्षयोपशम से जन्य। १४-१८ दानादि पाँच लब्धि अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से जन्य। (iv) औदयिक-यथासमय उदयप्राप्त कर्मों के स्वरूप का अनुभव करना अथवा कर्मों के उदय से जन्य परिणाम-विशेष जैसे, नरकादि पर्याय क्रोधादि कषाय जन्य परिणाम । इसके इक्कीस भेद हैं१. अज्ञान मतिज्ञानावरण और मिथ्यात्व मोह के उदय से जन्य । २. असिद्धत्व आठ कर्मों के उदय से जन्य । ३. असंयम अप्रत्याख्यानावरण कषाय के उदय से जन्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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