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________________ द्वार २२१ २८६ M o re . . ....... ४-९. लेश्या छ: जो लेश्या को योग का परिणाम मानते हैं उनके मतानुसार लेश्या योगजनक कर्म के उदय से जन्य है। जो लेश्याओं को कषाय का निस्यंद मानते हैं उनके मतानुसार लेश्या कषाय मोहनीय से जन्य है। पर, जो लेश्या को कर्म का निस्यद मानते हैं उनके मतानुसार लेश्या, आठों ही कर्मों से जन्य है। कषाय, मोहनीय कर्म के उदय से जन्य। वेद मोहनीय कर्म के उदय से जन्य । गति, नामकर्म के उदय से जन्य। मिथ्यात्व, मोहनीय कर्म के उदय से जन्य। १०-१३. चार कषाय १४-१६. तीन वेद १७-२०. चार गति २१. मिथ्यात्व प्रश्न-दानादि लब्धि क्षायिकी और क्षायोपशमिकी दोनों प्रकार की है अत: परस्पर विरोध नहीं होगा क्या? उत्तर-वस्तुत: दानादि लब्धियाँ दो प्रकार की हैं-(i) अन्तराय कर्म के क्षय से जन्य जैसे, केवलज्ञानी की। (i) अन्तराय कर्म के क्षयोपशम से जन्य जैसे छद्मस्थ की। • अज्ञान (विपरीत ज्ञान) क्षायोपशमिक और औदयिक दोनों भावों से जन्य होता है। क्योंकि यथार्थ या अयथार्थ ज्ञान मात्र ज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से ही होता है किन्तु विपरीत ज्ञान रूप अज्ञान का कारण ज्ञानावरणीय तथा मिथ्यात्व मोहनीय कर्म का उदय है। इस प्रकार एक ही अज्ञान के क्षायोपशमिक और औदयिक होने में कोई विरोध नही है। प्रश्न-निद्रा पंचक, सातावेदनीय, हास्य, रति-अरति आदि और भी बहुत से भाव कर्म उदयजन्य है तो औदयिक भाव के भेद २१ ही कैसे बताये ? उत्तर-औदयिक भाव के उक्त भेद अन्य भेदों के उपलक्षण मात्र हैं अत: कर्म के उदय से जन्य संभावित अन्य भेद भी औदयिक भाव के अन्तर्गत आ जाते हैं। (v) पारिणामिक–पूर्वावस्था का त्याग करके उत्तरावस्था को ग्रहण करना परिणाम है और वही पारिणामिक भाव है। इसके तीन भेद हैं (1) जीवत्व (ii) भव्यत्व और (iii) अभव्यत्व। ये तीनों अनादि पारिणामिक भाव है। ये उपलक्षण मात्र हैं। अत: • पदार्थों का नव-पुराण भाव • पर्वत, भवन, विमान, कूट, नरकावास आदि की चय-अपचय जन्य अवस्था विशेष । • गन्धर्व-नगर आदि की रचना-विशेष । • बन्दर की हँसी, उल्कापात, बादलों की गर्जना, तुषारपात, दिग्दाह, विद्युत्, इन्द्रधनुष आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001717
Book TitlePravachana Saroddhar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages522
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Principle
File Size8 MB
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